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श्रमण-संस्कृति अच्छी दृष्टि या कुदृष्टि, दरिद्रता, गुण या अवगुण से उच्च या निम्न परिवार में जन्म लेता है। मानव का कार्य उसकी स्थिति पूर्वजों से है। परिवार के नेक दया दृष्टि एवं उसके सेवा आदि सब कर्मों की देन हैं। यह उनके कर्म ही हैं, जो उन्हें उच्च या निम्न परिवार में जन्म देते हैं। मानव असामानता का कारण कर्म को ही बताया गया है। यह विभिन्न कर्म हैं, जिससे सभी लोग एक जैसे नहीं हैं, कुछ छोटे, कुछ लम्बे, कुछ स्वस्थ्य, कुछ बीमार, कुछ सुन्दर, कुछ भद्दे, कुछ शक्तिशाली, कुछ गरीब, कुछ धनी, कुछ उच्च स्तर, कुछ निम्न स्तर, कुछ बुद्धिमान, कुछ मूर्ख होते हैं। कर्म स्थिति पूर्वजों से प्राप्त और मानव के अन्तर्सम्बन्ध हैं। जैवीय विभिन्नता के कारण मानव के उपरी दिखावा, क्षमता अनुवांशिकी की वजह से विभिन्नता, सामाजिक अर्थात् उच्च या निम्न जाति में आर्थिक स्तर का आधार और कर्म से भाग्य और फल की सफलता का समाधान है। संसार में विभिन्नता का जन्म कर्म से है। जहाँ पर पूर्व जन्म में कीटाणु, पशु, पक्षी, आदमी, विभिन्न का अस्तित्व पाते है। बौद्ध दर्शन कर्म, जीवन और समाज के गहन समस्याओं को समझने व समाधान करने का मार्ग प्रदान किया है।
सन्दर्भ 1. आचार्य नरेन्द्र देव बौध धर्म दर्शन पृ० 287। 2. उपरोक्त पृ. 245। 3. पी० एल० वैद्य० माध्यमक शास्त्र भाग-17 पृ० 2-3। 4. बी ट्रेकनर, अगुत्तर निकाप, वाल्यूम दो पृ० 157-158। 5. उपरोक्त, वाल्यूम प्रथम पृ० 136। 6. द्वारिकादास शास्त्री, मिलिन्द पन्ह पृ० 32। 7. द्वारिकादास शास्त्री, विसुद्धिमग्ग भाग-2 पृ० 205 । 8. प्रज्ञानन्द स्थाविर, धम्मपद पृ० 183। 9. बी० ट्रेकनर मज्झिम निकाय-वाल्यूम-तीन पृ० 202-206।