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श्रमण-परम्परा में दिशा-पूजा
एक अनुशीलन
ध्यानेन्द्र नारायण दूबे
श्रमण परम्पा की पृष्ठभूमि यद्यपि पुरा-वैदिक है तथापि भारतीय इतिहास में बौद्ध एवं जैन धर्म श्रमण-परम्परा के केन्द्र में है। दिशा-पूजन परम्परा के संदर्भ इन दोनों ही धर्मों में प्राप्त होते हैं। 1. बौद्ध धर्म में दिशा पूजा
__ बौद्ध ग्रन्थ 'सुत्तनिपात' की टीका महानिर्देश में दिशा-पूजा को दिशाव्रत' एवं दिशा पूजकों को दिशाव्रतिक' कहा गया है। महानिर्देश में दिशाव्रतिकों का उल्लेख अन्यान्य व्रतिकों के साथ हुआ है। इन व्रतिकों के सन्दर्भ में यह उल्लेख हुआ है कि वे व्रतिक क्रमशः अपने अपने व्रतों के द्वारा शुद्धि एवं मुक्ति की प्राप्ति करते हैं।
बौद्ध-ग्रन्थ दीघ-निकाय के सिगालोवाद-सुत्त' में दिशा-पूजा के बारे में अधिक स्पष्ट सूचना प्राप्त होती है। इस सुत्त में यह उल्लेख है कि राजगृह निवासी सिगाल नामक एक गृहस्थ-पुत्र प्रातः काल उठकर राजगृह से निकलकर गीले वस्त्रों एवं गीले केशों सहित हाथ जोड़कर क्रमशः पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊपर तथा नीचे सभी दिशाओं को नमस्कार करता था। उसी समय जब भगवान बुद्ध ने भिक्षाटन के लिए राजगृह में प्रवेश किया तब उन्होंने सिगाल को उपर्युक्त विधि से दिशाओं को नमस्कार करते देखा। भगवान बुद्ध ने यह पूछा कि तुम सवेरे उठकर दिशाओं को क्यों नमस्कार कर रहा है। गृहस्थ-पुत्र ने उत्तर दिया कि उसके पिता ने मृत्यु के समय उसे यह शिक्षा दी थी कि वह