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श्रमण-संस्कृति के शाश्वत जीवन मूल्यों की तरफ लौटना होगा। निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति की संजीवनी शक्ति भारतवर्ष को विश्व में आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्थायित्व प्रदान करने में सफल होगी, क्योंकि युग पुरुष महात्मा बुद्ध के
आदर्श युग युगान्तर शाश्वत व चिरन्तन रहेंगे और भारतीय संस्कृति की रंगों में प्राणवायु की तरह प्रवाहवान बने रहेंगे।
सन्दर्भ 1. डॉ० शशि प्रभा कुमार, 'भारतीय संस्कृतिः विविध आयाम' विद्यानिधि प्रकाशन,
दिल्ली। 2. डॉ० आर० एन० पाण्डेय 'प्राचीन भारत का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास'
प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद। 3. मोतीलाल बनारसीदास, 'इंडियन बुद्धिज्म', 1970 पृष्ठ 272। 4. वी० एन० लूनिया 'प्राचीन भारतीय संस्कृति' लक्ष्मीनारायण प्रकाशन, आगरा। 5. पाण्डेय, गोविन्द चन्द्र 'बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास,' पृ० 20-211 6. मनुस्मृति। 7. ईषोपनिषद् (6)। 8. यजुर्वेद, 40/21 9. दूबे सीतारामः 'बौद्ध संघ का प्रारम्भिक विकास' 1988 संघ की सामाजिक आर्थिक
पृष्ठभूमि। 10. राय चौधरी, 'पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ ऐशियेन्ट इण्डिया' पृ० 189-901 11. बी० एन० लूनिया, 'प्राचीन भारतीय संस्कृति' लक्ष्मीनारायण प्रकाशन, आगरा।