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भारतीय चिन्तन और संस्कृति को बौद्ध धर्म का योगदान 221 निःशस्त्रीकरण, गुटनिरपेक्षता तथा पंचशील एवं शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व जैसे शाश्वत सिद्धान्तों पर आधारित है।
भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की सर्वोत्कृष्ट देन कला के क्षेत्र में रही है। बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में वास्तुकला, भवन निर्माण कला, चित्रकला
और मूर्तिकला का विशेष योगदान रहा है। बौद्ध विहारों, मन्दिरों, स्तूपों, स्तम्भों, स्मारकों आदि के निर्माण व कलापूर्ण अलंकरण से स्थापत्य कला, मूर्तिकला और चित्रकला की नींव शैलियों से विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। मथुरा कला शैली और गान्धार-कला शैली इसके उदाहरण हैं। बौद्ध स्थापत्य कला का सौन्दर्य, सौष्ठव विश्व में अपनी अलग पहचान के लिये विख्यात है। सांची, भरहुत और नागार्जुनकोंडा के स्तूपों, अजन्ता और एलोरा की बौद्ध गुफाओं और अशोक के शिलास्तम्भों की गणना भारतीय कला के उत्कृष्ट नमूनों में की जाती है। निश्चित रूप से भारतीय समाज, सभ्यता व संस्कृति कला के उत्कृष्ट नमूनों में की जाती है। निश्चित रूप से भारतीय समाज, सभ्यता व संस्कृति पर जीवन के विविध क्षेत्रों में बौद्ध धर्म में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। अपनी संस्कृति के बल पर ही आधुनिक भारत विश्व में एक अलग पहचान रखता है। भारत विश्व मंगल का देश रहा है। यहाँ की सनातन लोक कल्याण परम्परा रही है। परन्तु आज भारतीय संस्कृति के सामने 'वैश्विक ग्राम' (ळ्सवइंस टपससंहम) की संकल्पना की आड़ में अनेक भयंकर चुनौतियां खड़ी होती हुयी दिखायी दे रही हैं। 'वसुधैव-कुटुम्बकम्' व अहिंसा के मानवधर्म से प्राणवायु ग्रहण करती भारतीय संस्कृति पर 'वैश्विक ग्राम' की आड़ में सांस्कृतिक आक्रमण होता दिखायी दे रहा है। सूचना व संचार क्रान्ति ने घर-घर में पहुंच कर भारतीय संस्कृति की रीढ़ (परिवार) को तोड़ने का घिनौना कुचक्र शुरू कर दिया है। पाश्चात्य संस्कृति, भोग-विलास सांसारिक भोगों के प्रति अन्तहीन तृष्णा, भौतिक सुखों के पीछे अन्धी दौड़ प्रतिस्पर्धा ने भारतीय संस्कृति के शाश्वत व सनातन मूल्यों को गहरा आघात पहुंचाया है। राजनैतिक पराधीनता से सांस्कृतिक पराधीनता अधिक खतरनाक होती है। अतः भारतवासियों को सांस्कृतिक पराधीनता के अभिशाप से बचने के लिये पुनः शील, संयम, उदारता, त्याग, अहिंसा, स्वतंत्रता, समानता, न्याय, धार्मिक सहिष्णुता वसुधैव कुटुम्बकम् व विश्व मंगल पर आधारित भारतीय संस्कृति