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श्रमण-संस्कृति काफी बल मिला। बौद्ध धर्म की सादगी, सरलता व सुग्राह्यता ने इसे शीघ्र ही लौकिक धर्म बना दिया और इसे विशाल साम्राज्यों के निर्माण की परम्परा शुरू हो गयी। अशोक, कनिष्क, हर्ष व धर्मपाल आदि शासकों ने बौद्ध धर्म को राज्याश्रय प्रदान कर इसके सिद्धान्तों के अनुकूल शासन किया। इस धर्म की अहिंसा प्रधान नीति ने राजाओं के मन भी हिंसा व रक्तपात के विरूद्ध घृणा की भावना का संचार कर दिया तथा साम्राज्यवादी नीति का परित्याग कर तत्कालीन शासकों ने विदेशों तक शान्ति व अहिंसा का सन्देश फैलाकर इसे मानवता का विश्वव्यापी धर्म बना दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त भारतीय संविधान निर्माताओं ने जातिवाद, वर्णवाद, छुआछूत का विरोध कर, कर्म प्रधान लोक कल्याणकारी मूल्यों, स्वतंत्रता, समानता, न्याय, धार्मिक सहिष्णुता व नैतिकता पर आधारित शाश्वत मूल्यों को राष्ट्रधर्म व भारतीय संस्कृति के मूलाधार के रूप में मान्यता प्रदान की। भारतीय संस्कृति में समाहित सहिष्णुता, आत्मसात् करने की शक्ति, विश्व-बन्धुत्व की भावना हमारी विदेश नीति को प्रमुख रूप से प्रभावित करती आ रही है। भारत ने कभी भी किसी राष्ट्र के विरूद्ध आक्रामक नीति अपनाने में अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की चाहे वह युद्ध पाकिस्तान के साथ हो अथवा चीन के साथ। बौद्ध धर्म का उद्भव भारत में हुआ जो श्रीलंका, थाईलैण्ड, कोरिया एवं जापान में विशेष रूप से फैला। थाईलैण्ड में तो महाभारत पर आधारित भित्तिचित्र वहाँ के ऐतिहासिक स्थलों की दीवारों पर अंकित है। शान्ति, सह-अस्तित्व एवं सहनशीलता बौद्ध धर्म के प्रमुख तत्व हैं तथा बौद्ध धर्म के प्रमुख तत्व हैं तथा बौद्ध धर्म की परम्पराओं एवं चिन्तन की स्पष्ट छाप भारतीय संस्कृति एवं भारतीय विदेश नीति पर दिखायी देती हैं। पंचशील के पांच सिद्धान्तों का प्रतिपादन भी भारतीय विदेशी नीति की शान्तिप्रियता का प्रतीक है। बौद्ध धर्म में आचरण के पांच सिद्धान्तों का पालन प्रत्येक व्यक्ति का धर्म समझा जाता था उसी प्रकार भारतीय विदेश नीति में आधुनिक पंचशील के सिद्धान्तों द्वारा राष्ट्रों के लिये दूसरे राष्ट्रों के साथ आचरण के व्रत का निर्धारण किया गया है। इतना ही नहीं भारत वर्ष का राष्ट्रीय चिन्ह 'अशोक लॉट' तथा तिरंगे पर चक्र दोनों बौद्ध धर्म की ही देन है। बौद्ध धर्म से प्रेरणा लेते हुये भारत की विदेश नीति विश्वशान्ति पड़ौसी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध, साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद तथा नक्सलवाद का विरोध,