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भारतीय चिन्तन और संस्कृति को बौद्ध धर्म का योगदान
219 जिससे संघ का नैतिक जीवन श्रेष्ठ और आदर्श बन गया तथा उन्होंने अपने पवित्र जीवन, सेवा, त्याग व धर्मपरायणता से भारतीय जनमानस को अत्यधिक गहरायी से प्रभावित किया। भारतीय संस्कृति की अद्भुत समन्वय, भावना बौद्ध धर्म की ही देन है। भारतीय संस्कृति की समग्रता इसी संयोजन व समन्वय के ही परिणामस्वरूप है। संघ व्यवस्था में बौद्ध धर्म के प्रचार की एक नवीन प्रणाली प्रारम्भ हुई। बौद्ध संघ हेतु निर्मित विहार और मठ ज्ञान विज्ञान के केन्द्र थी। नालन्दा विक्रमशीला और उदन्तपुरी के बौद्ध विहार प्रसिद्ध विश्वविद्यालय बन गये। वर्ण व जातिगत भेदभाव से रहित से संघ भारतीय समाज के लिये जागरूकता ज्ञान-विज्ञान के प्रसार, व शिक्षा प्राप्त करने तथा आत्मोद्धार के प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित हुये। नालन्दा और विक्रमशल विश्वविद्यालय विश्व स्तर में बौद्ध शिक्षण संस्थानों के रूप में विख्यात हुये जिसमें नालन्दा विश्वविद्यालय महायान बौद्ध धर्म का केन्द्र बना तथा भारत ही नहीं वरन् विश्व में अनेक क्षेत्रों से विद्यार्थी यहाँ शिक्षा ग्रहण करने आते थे। ह्वेनसांग स्वयं नालन्दा विश्वविद्यालय का छात्र रहा था और बाद में यहीं पर अध्यापन कार्य भी किया था। अनेक विदेशी शासकों जिसमें हिन्द, यवन, कुषाण एवं शंक ने इस धर्म से प्रभावित होकर इसे स्वीकार किया। हिन्द यवन शासक मेनान्डर ने इस धर्म के सम्मान में अपना नाम बदलकर 'मिलिन्द राव' रख लिया था तथा अपनी मुद्राओं पर ब्राह्मी, खरोष्ठी लिपियों को स्थान भी दिया। इस प्रकार भारतीय समाज में शिक्षा को सार्वजनिक बनाने तथा शिक्षा और शिक्षण संस्थाओं को समृद्ध रूप देने में बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
बाल्यावस्था से ही महात्मा बुद्ध सहृदय, दयालु, चिन्तनशील एवं वैरागी प्रवृत्ति के थे। भोग-विलास ऐश्वर्य व राजसी ठाट-बाट से विमुख, तथा सांसारिक दुःखों से कातर महात्मा बुद्ध ने वेदों की प्रमाणिकता, यज्ञादि कर्मकाण्डों का विरोध, कर्मवाद तथा अनीश्वरवाद में जो विश्वास दिखाया उसका व्यापक प्रभाव भारतीय संस्कृति व भारत की राजनीतिक व्यवस्था पर भी पड़ा। इस धर्म ने न केवल भारत में ही वरन् विश्व में राजनीतिक एकता व राष्ट्रीय भावनाओं का सुदृढ़ करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। धर्मोपदेशों में साधारण बोलचाल की भाषा के प्रयोग से राष्ट्रीय एकता की भावनाओं को