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श्रमण-संस्कृति उन्हें धार्मिक कार्य करने में किसी प्रकार का प्रतिबन्ध न था। इस युग में स्त्रियाँ, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य और अनेक देवताओं की पूजा वन्दना करती थी तथा नदी के घाटों में जाकर डुबकी लगाती थीं, आधे सिर का मुण्डन कराकर पृथ्वी पर शयन करती और रात्रि भोजन का त्याग करती थी और अनेक ब्रतों का पालन करती थीं। स्त्रियों को धार्मिक कार्य करने पुरुषों के समान ही फल मिलेगा यह धारणा तत्कालीन समाज में भी प्रचलित थी। विशाखा, निगार माता, नकुल माता, गृहपत्नि महाप्रजापत्ति गौतमी आदि नारियाँ महात्मा बुद्ध से साक्षात धार्मिक विषयों पर चर्चा करती थी।
__ बौद्ध साहित्यों में इस बात का उल्लेख है कि स्त्रियों में शासन की क्षमता नहीं होती क्योंकि अभी बुद्धि क्षीण होती है। यहाँ तक कहा गया है कि राज्य करने पर पाप का भागी बनना पड़ता है। लेकिन इन कथानकों के अतिरिक्त भी बौद्ध साहित्य में नारी शासन में अनेक उद्धरण उपलब्ध हैं। महादेवी अग्रमहिषी तथा राजपत्नि का राजवृत्त के कार्य भार पर विशेष प्रभाव पड़ता था। राजमहिषी राजनीति में मंत्रणा भी देती थी। तिब्यरक्षिता के उपचार से जब अशोक स्वस्थ हो गया तो उसने प्रसन्न होकर एक सप्ताह के लिए अपना राज्य उसे सौंप दिया। कौशाम्बी नरेश उदयन के बन्दी होने पर उसकी माँ ने राज्य का संचालन किया था।
प्राचीन युग में यह परम्परा रही है कि पिता की सम्पत्ति पर उसके पुत्र का अधिकार होता है और पुत्र के रहते पुत्री का सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। लेकिन बौद्ध ग्रन्थों में हम बात में प्रमाण मिलते है कि पुत्र न होने पर पुत्री ही पिता के सम्पूर्ण सम्पत्ति की अधिकारी की होती थी। स्त्रियों के पास बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण होते थे जो विवाह के अवसर पर पिता तथा पति से उपहार स्वरूप प्राप्त होता था तथा उन्हें स्त्री धन के उपयोग करने तथा किसी प्रकार के व्यवहार में लाने के लिए पति के अनुमति की आवश्यकता नहीं होती थी।
तत्कालीन समाज में गणिकाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान था। बौद्ध साहित्य में ऐसी अनेक गणिकाओं का उल्लेख आया है कि जिन्हें बौद्ध साहित्य में 'नगरशोभिन' तथा 'जनपद कल्याणी' के नाम से जाना जाता था।