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प्रारम्भिक बौद्ध वाङ्गमय में प्रति बिम्बित नारी जीवन
185 कि सुजाता नामक स्त्री ने राज दण्ड से मुक्त करा अपने पति के प्राण की रक्षा की! पति की मृत्यु के बाद नारियों का जीवन कष्टमय हो जाता था। वे अपने जीवन-यापन के लिए पति की सम्पत्ति को अपनाती थी या फिर पति कुल में मुख्य पुरुष के संरक्षण में पर पुरुष को मुख्य रूप से ग्रहण करती थी। इस प्रकार विधवावो का जीवन कवटकर था और उनके लिए भिक्षा मांगना एक माल आधार रह जाता था नारी के लिए वैधव्य जीवन अभिशाप तो होता ही है परन्तु तत्कालीन समाज में यह अवस्था उनके लिए और भी कष्टकर थी।
प्राचीन भारत में माता का स्थान सदा से सर्वोपरि रहा है तथा परिवार भी वह सबसे अधिक पूजनीय और गौरवशाली महिला होती थी। क्योंकि जातक कथा में माता-पिता को देवता कहते हुए उन्हें ब्रह्म कहा गया है और कहा गया है
"ब्रह्मा ही माता पितरो" लेकिन जातक कथाओं में कुछ ऐसे भी दृष्टांत उपलब्ध हैं जहाँ माताओं को चण्डी रूप में चित्रित किया गया है। सुजाता जातक में माता को क्रोधिनी चण्ड, कठोर, कोसने वाली और परिहास करने वाली माँ के रूप में हुआ है।
___ बौद्ध साहित्य में नारियों के शैक्षणिक एवं धार्मिक जीवन का जो चित्रण मिलता है उसके आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इस काल में लड़कियों को पति गृह में कैसे रहना चाहिए। बौद्धकालीन नारियों को बौद्ध विहारों एवं मठो में अर्हत उपाध्याय तथा आचार्य शिक्षा देते थे। लेकिन स्थायों के शिक्षा का प्रबन्ध घर पर ही होता था क्योंकि उनके पाठशाला में विद्या अर्जन का उल्लेख कम मिलता है। जीवन को सफल बनाने के लिए कन्या का अपेक्षित ज्ञान एवं शिक्षा अपनी माता से प्राप्त होती थी। भिक्षणियाँ भी नारियों को उपदेश देकर शिक्षा देती थी। भिक्षुणी खेमा को पण्डिता मेधाविनी चतुर प्रतिभावान तथा अच्छी सूझ वाला कहा गया है।
धेरीगाथा की भिक्षुणी कवयित्रियों में विषय में ज्ञात होता है कि वे ज्ञान पिपासु होती थी तथा ज्ञान के अन्वेषण एवं प्राष्टि में लीन रहती थी। इसके साथ ही साथ स्त्रियों को संगीत नृत्य और ललित कलाओं में भी शिक्षा दी जाती थी।
इस काल में नारियों को धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से दी जाती थी, और