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भारतीय समाजवाद के प्रतिष्ठाता जयप्रकाश नारायण
153 यद्यपि इस अवधि तक देश के कई भागों में समाजवादी संगठन आकार लेने लगा था। 1933 में बनारस में कमलापति त्रिपाठी, त्रपद भट्टाचार्या और सम्पूर्णानन्द ने समाजवादी दल का संगठन बनाया था। करेल और दिल्ली में भी इस तरह के दल का रूप दिखने लगा था।
जय प्रकाश के मानसतल पर स्वभावतः एक छाप रेखांकित हो चुकी थी कि 'आजाद देश की राष्ट्रीता पूँजीवादी प्रसार भले ही बन जाय परन्तु गुलाम देश की राष्ट्रीयता एक क्रांतिकारी शक्ति होती है इस क्रांतिकारी शक्ति से दूर रहकर समाजवाद एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकता हमारी कांग्रेसी शक्ति इसी क्रांतिकारी शक्ति का संगठित रूप है अतः इस क्रांतिकारी संस्था से सम्पर्क रखकर ही समाजवादी जनता के निकट पहुँच सकता है। जय प्रकाश जेल में ही समाजवादी विचारकों के साथ नियमित क्लास भी लगाया करते थे अन्ततः विचार विमर्श के उपरान्त चार प्रमुख प्रश्न उभरकर सामने आये।
1. गाँधी के नेतृत्वप के प्रति असंतोष। 2. सविनय अवज्ञा की असफलता। 3. वर्ग विश्लेषण की पद्धति लागू करने की इच्छा। 4. कृषक मजदूर से जुड़ जाने की आकांक्षा।
जय प्रकाश के राजनीतिक जीवन का अभिध्येन सामाजिक न्याय के आधार शिला पर समाज की संरचना रहा है वे सामाजिक न्याय के दोनों पक्षों स्वतंत्रता और समानता का अध्ययन किये और जेल से मुक्त होने पर जय प्रकाश ने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर सक्रिय रूप से इस संगठन के लिए प्रयास किया यद्यपि नेहरू ने इस दल का स्वागत किया परन्तु सदस्यता को इनकार किया था। किन्तु अनेक विचार विमर्श के पश्चात् जय प्रकाश नारायण, नरेन्द्र देव आदि ने इस कांग्रेस के शाखा के रूप में संगठित करने का निश्चय किया तथा इस कांग्रेस समाजवदी दल के नाम से स्थापित किया। जय प्रकाश नारायण भारतीय साम्यवादियों से पूर्णतः सन्तुष्ट नहीं थे तथापि समाजवादी कार्यक्रम चलाने हेतु साम्यवादियों से उन्हें गठबन्धन करना पड़ा। अपने समाजवदी संकल्प तथा कार्यक्रमों को स्थापित करने के लिए उन्होंने कांग्रेस समाजवादी