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श्रमण-संस्कृति किया कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही पर्याप्त नहीं है। अतः सब प्रकार से शोषण भूख और निर्धनता से मुक्ति के लिए समाजवादी समाज की रचना की स्थापना का प्रयास किया क्योंकि एक श्रमिक, मकैनिक, खेतिहार, रेस्टोरेन्ट पैकर, विक्रेता आदि के रूप में जय प्रकाश नारायण ने मेहनतकश के यथार्थ जीवन में उतरकर सामाजिक विषमता का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
यद्यपि पने अमेरिकी प्रवासकाल में जय प्रकाश नारायण साम्यवादी दल के सदस्य थे और ला फालेट जैसे प्रगतीशील विचारकों से प्रभावित थे तथापि स्वदेश लौटने पर साम्यवादी लहर की उफान उन्हें कहीं और भटका नहीं सकी। जय प्रकाश नारायण की दृष्टि राष्ट्रीय आन्दोलन और राष्ट्र को समाजवादी मांग पर ही केन्द्रित रही और समाजवादी विचारों तथा गांधीवादी नीतियों के प्रति निष्ठा तथा त्याग के कारण लोकप्रिय हो गये। अमेरिकी से साम्यवादी विचारधारा से अभिभूत होकर भारत आने पर भारतीय साम्यवादियों से बड़ी उम्मीद किये थे, इस दृष्टि से जय प्रकाश नारायण को गाँधी के नेतृत्व में क्रांन्ति का अभाव दिखा। अतः जय प्रकाश ने गाँधी के कार्यक्रमों की प्रशंसा न कर उसे स्वतंत्रता के लक्ष्य की प्राप्ति में असफल प्रयोग के रूप में देखा।
जय प्रकाश के मानसतल पर वैज्ञानिक समाजवाद की भावना आन्दोलित हो रही थी, जिसमें तत्कालीन अन्तराष्ट्रीय परिदृष्य का भी व्यापक प्रभाव पड़ा। फलतः जय प्रकाश की दृष्टि में वैज्ञानिक समाजवाद ही आगे बढ़ने का एक मात्र मार्ग दिखा। जय प्रकाश को एक तरफ कांग्रेस के कार्यक्रमों में समाजवादी तत्व का अभाव दृष्टिगोचर हो रहा था तो दूसरी ओर विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी, व्यापक बेरोजगारी तथा कारखानों की अनवरत तालाबन्दी भी चिन्ता का कारण था। ___नैराश्य एवं धनीभूत असंतोष में गर्भित जय प्रकाश नारायण का समाजवादी विचार कांग्रेस के अन्दर भी पूर्व से चल रहा था और वामपंथी विचारधारा का बीजरूप कांग्रेस के अन्तर्गत नेहरू और सुभाष के द्वारा अंकुरित किया जा चुका था। कांग्रेस के अन्तर्गत ये वामपंथी, किसानों और मजदूरों के सीधी कार्यवाही के पोषक थे।