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निर्देशन में एक दर्जन से अधिक शोधार्थियों ने शोध उपाधि अर्जित किया है एवं आधे दर्जन से अधिक शोधरत हैं। श्रद्धेय गुरुवर के राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में चालीस से अधिक श्रेष्ठ शोध लेख प्रकाशित हैं। आपने राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सत्राध्यक्ष रूप में तकनीकी सत्रों का सफल संचालन करते हुए सर्वथा शोधार्थियों को प्रोत्साहित किया। आपने विभिन्न विश्वविद्यालयों में अपने महत्वपूर्ण व्याख्यान प्रस्तुत करके शोधार्थियों की जिज्ञासा को सर्वथा शान्त किया ।
गुरुवरेण्य आचार्य प्रेमसागर चतुर्वेदी जी विभिन्न विश्वविद्यालयों के अन्यान्य समितियों के सदस्य रूप में एवं अनेक शैक्षिक सेवा प्रदायी संस्थाओं के चयन समिति के सदस्य रूप में अनेक प्रियविद्यार्थियों को अपना आशीर्वाद प्रदान किये। आचार्यवर चतुर्वेदी जी अपने सेवा अवधि में राष्ट्रीय सेवा योजना के चार वर्षों तक कार्यक्रम समन्वयक रहे। इस कार्यावधि में भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा निर्धारित अनेकानेक महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को राष्ट्रीय सेवा योजना का अंग बनाये जिससे विश्वविद्यालय परिसर एवं महाविद्यालयों को राष्ट्रीय योजना की नयी ऊँचाईयां प्राप्त हुयीं।
आचार्य चतुर्वेदी जी उस कौशाम्बी क्षेत्र में जन्मे जिसे गंगा घाटी के प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है । पुन: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किये जो पुरातात्विक गतिविधियों के लिए सर्वथा चर्चित रहा है। पुरातात्विक मेधा आचार्यवर के अन्तर्मन को कुरेद रहा था तभी स्वभावानुरूप 1974 ई० में सोहगौरा एवं 1980 ई० में फाजिलनगर क्षेत्र में आपने सफल पुरातात्विक गतिविधियों में सहायक की भूमिका का निर्वाह किया ।
प्रो० प्रेमसागर चतुर्वेदी जी प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के विभागाध्यक्ष रूप में अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल संयोजन किये। आपने सर्वथा स्मृतिशेष आचार्य विशम्भर शरण पाठक, स्मृति शेष आचार्य गोवर्द्धन राय शर्मा, एवं आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय को सर्वथा आदर्श माना एवं अपने सरल व्यक्तित्व तथा प्रतिभाशाली शैक्षिक क्रियाकलापों द्वारा सदैव अपने शिष्यों के आदर्श रूप में ख्याति अर्जित करते रहे। कक्षा में नियत समय