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श्रमण-संस्कृति
14. वही 15. वही
16. वही
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17. वही 18. वही 19. वही 20. वही 21. वही 22. वही 23. वही 24. वही 25. वही 26. आधुनिक खोजों से यह स्पष्ट हो गया है कि बुद्ध ने शील, समाधि एवं प्रज्ञा को ही
दु:ख निरोध का साधन बताया था। शील का अर्थ सम्यक आचरण, समाधि का अर्थ सम्यक ध्यान तथा प्रज्ञा का अर्थ सम्यक ज्ञान से है। शील और समाधि से प्रज्ञा की उत्पत्ति होती है, जो सांसारिक दुःखों से मुक्ति पाने का मूल साधन है। (प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति डॉ० के० सो० श्रीवास्तव) पृ० 849।