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बुद्धायन में अभिव्यक्त बौद्ध धर्म एवं उसकी प्रासंगिकता धर्म' को प्रणाम करता है, जिसका मुख्य दर्शन – 'प्रज्ञा, शील और समाधि' है तथा जो संसार के सभी जीवों के कल्याण के लिए कार्य करता है, उसकी वंदना करता है।
प्रज्ञा, शील, समाधि जिनि रहल धर्म-आधार। बंदी करुणा-सिंधु सम जाहि जीव-हित प्यार।
अतः हम कह सकते हैं कि इस हिंसा प्रधान युग में 'बुद्धायन' एवं इसमें वर्णित बौद्ध दर्शन आम आदमी के जीवन में एक शीतल छाया समान है, जिसके आश्रय में आने पर इस अशांत जग को शांति मिलेगी। प्रख्यात विद्वान डॉ० केदार नाथ सिंह ने ठीक ही कहा है, "अगर अपने पुराने क्रान्तिकारी नायक बुद्ध को सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तनकर्ता की दृष्टि से देखा जाए तो बुद्ध एवं बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता घटी नहीं बल्कि और अधिक बढ़ गयी है। और अर्जुन सिंह अशांत ने महाकाव्य 'बुद्धायन' की रचना कर एक ऐतिहासिक कार्य किया है, जो कि समय की मांग है।"
संदर्भ 1. भोजपुरी भाषा और साहित्य, डॉ० उदय नारायण तिवारी, पृ० 234 2. भोजपुरी के आदि कवि कबीर, डॉ० मैनेजर पाण्डेय, पृ० 4
(अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन) 3. सारण के महान संतकवि धरनी दास, डॉ० अजय कुमार
(हिन्दी विभाग जय प्रकाश विश्व विद्यालय, छपरा) ईक्षा, अखिल भारतीय भाषा
साहित्य सम्मेलन भोजपुर, आरा अंक 6, पृ० 97 4. भिखारी ठाकुर रचनावली, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना 5. डॉ० अजय कुमार (सारण वाणी, महेन्द्र मिश्र विशेषांक), पृ० 43 6. स्व० श्री रघुवीर नारायण जी, आचार्य श्री शिवपूजन सहाय 7. बुद्धायन भूमिका, डॉ० केदार नाथ सिंह 8. बुद्धायन भूमिका, डॉ० केदार नाथ सिंह 9. बुद्धायन सम्पादकीय, पाण्डेय कपिल 10. बुद्धायन वंदना पर्व 11. वही 12. वही 13. वही