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श्रमण-संस्कृति
नाश- 'चार आर्य सत्य' (1. दुःख, 2. दुःख समुदय, 3. दु:ख निरोध, 4. दु:ख निरोध गामिनी पतिपदा) के ज्ञान द्वारा ही सम्भव है। और 'अष्टांगिक मार्ग' (1. सम्यक दृष्टि, 2. सम्यक संकल्प, 3. सम्यक वाक, 4. सम्यक कर्मान्त, 5. सम्यक आजीव, 6. सम्यक व्यायाम, 7. सम्यक स्मृति, 8. सम्यक समाधि) के द्वारा ही निर्वाण को प्राप्त किया जा सकता है।
आर्य सत्य के ज्ञान जग-दुःख-कारण शमन हित । अष्ट अंग सोपान प्राप्ति हेतु निर्वाण जग । । ३
जिस प्रकार जीव इस संसार में जन्म लेता है मृत्यु को प्राप्त करता है और अन्तिम क्षण तक गतिमान रहता है। बौद्ध दर्शन के अनुसार वह पूर्व जन्म के कर्म के आधार पर ही जन्म एवं मृत्यु को प्राप्त करता है। यही संपूर्ण सृष्टि का आधार है। जो क्षण-क्षण अपना रूप बदलते रहता है, यही सत्य है। और इसके अलावे इस संसार में कुछ शाश्वत नहीं है ।
जइसे जीव जहान जन्मत होखत काल लय । सदा संग गतिमान अंतिम क्षण अवसान तक ॥। पूर्व कर्म - आधार जन्म-मरण व्यापार जग । चलत रहत संसार चंचल नित्य प्रवाह मँह ।। सकल सृष्टि- आधार बदलत क्षण-क्षण रूप जग ।
भइल सत्य साकार नइखे शाश्वत जगत किछु । । 24
बौद्ध दर्शन का मुख्य आधार जन कल्याण ही है। जिसे कविवर ने बताया है कि लोगों के कल्याण करने से अज्ञान रूपी अंधेरा का नाश होगा तथा दूसरों को सुख देने से मुक्ति का मार्ग प्रसस्त होगा। ऐसा करने से निर्वाण सुलभ हो जाएगा और इस संसार में शांति और सद ज्ञान प्राप्त होगा ।
- पथ ।।
जे जन परम हिताय करहिं नष्ट अज्ञान-तम । जे जन परम सुखाय करहिं प्रकाशित मुक्तिसुलभ परम निर्वाण होखहिं कारण जाहि जग । प्राप्त शांति सद्ज्ञान भोगत मानव जाहि फल ।। "
इस प्रकार कवि उस दया के सागर 'बुद्ध' को और वह ' जन कल्याणकारी