SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थूलिभद्र-कथा और तत्सम्बन्धी राजस्थानी रचनाएं जैन भक्ति-साहित्य में मुनि स्थूलिभद्र का बड़ा महत्व है। आगम-साहित्य में भगवान महावीर और गौतम के पश्चात् तृतीय मंगल के रूप में मुनि स्थूलिभद्र का ही स्मरण किया गया है, जिसका प्रमाण है यह श्लोक मंगलं भगवानवीरो मंगलम् गौतमः प्रभुः । मंगलं स्थूलिभद्राद्या, जैन धर्मो स्तु मंगलम् ।। __ स्थूलिभद्र को भद्रबाहु का पट्टधर माना जाता है, जिनके विषय में यह कथा प्रचलित है-पाटलीपुत्र नगर में महापद्म नाम का नौवां नन्द राज्य करता था । कल्पक-वंश में उत्पन्न गौतम गौत्रीय ब्राह्मण शकडाल उसका महामंत्री था। मंत्री के दो पुत्र और सात पुत्रियां थीं। बड़े पुत्र का नाम स्थूलिभद्र और दूसरे का श्रीयक था । श्रीयक राजा नन्द का अंगरक्षक एवं विश्वासपात्र था । शकडाल ने स्थूलिभद्र को कला और चातुर्य की शिक्षा के लिये पाटलीपुत्र की प्रसिद्ध वेश्या कोशा के घर भेज रखा था। जहां वह कोशा के रूप-यौवन में पूर्णतः अनुरक्त हो गया । सातों पुत्रियां भी बड़ी गुणवती थीं। पाटलीपुत्र का ब्राह्मण वररूचि प्रतिदिन आठ सौ नये-नये श्लोकों से नन्द राजा की स्तुति करता था । वररुचि के श्लोको की प्रशंसात्मक दृष्टि राजा मंत्री पर डालता किन्तु शकडाल की उदासीनता देखकर राजा उसे कोई दान नहीं देता। एक दिन वररुचि फल-फूल आदि के साथ शकडाल की पत्नी के पास पहुंचा और अपनी सारी कथा उसे कह सुनाई । पत्नी के अनुग्रह पर अब शकडाल ने वररुचि के श्लोकों की 1. सं. मुनि हस्तीमल मेवाड़ी - आगम के अनमोल रत्न, पृ. 386
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy