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________________ जैन देवियां एवं तत्सम्बन्धी जैन रचनाएं 59 “गौर वरण तनु तेज अपारा, जाणे पूनिम शशि आकारा श्वेत वस्त्र पहिर्या शृंगारा, माहि कई मृगमद कई धनसारा । xxx अणियाळी आंजी आंखड़ली, भमुह कमाण श्याम कंकडली, मुख निरमल शारद-शशि दिप्पई, काने कुंडल रवि शशि जिप्पई ।। कटि मेखल खलकई कहि चूडी, रतन जडित सोवन मई रुडी। चरणे घूघर घमघम घमकई, झांझर रमझिम झणकई ॥" चौथमाता जी रो छंद "गणपति छंद” के रचयिता कवि कान्ह की अन्य महत्वपूर्ण रचना “चौथ माताजी रो छंद” है । कवि कान्ह भावड़गच्छ से संबंधित था—"श्री भावड़ गच्छ शृंगार उदो” । आलोच्य रचना की प्रति राज. प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, उदयपुर में संगृहीत है, जिसके आधार पर इसका संपादन कर डा. ब्रजमोहन जावलिया ने “वरदा” पत्रिका में प्रकाशित करवाया। इस प्रकाशित अंश के अनुसार कवि ने इस रचना में चौथ माता के व्रत का आधार लेकर चौथ माता की दुर्गा रूप में स्तुति की है । कान्ह ने इस देवी भक्ति सम्बन्धी रचना की सम्पूर्ण सामग्री को 101 छंदों ( दूहे, मोतीदास, भुजंगी, श्लोक, मूळचाळा, कवित्त) में समाहित किया है। आरंभ में देवी के पौराणिक नामों, निवास स्थानों द्वारा महात्म्य का चित्रण किया है । तदनन्तर चौथ माता की कथा रूप में देवी दुर्गा की कथा कही है। देवी के नामों-चौथी, अंबा, हरिसिद्धि महामाई, परमेसरी चामुण्डा, ज्वालामुखी, योगिनी, पद्मणी का उल्लेख हुआ है। कवि के अनुसार यह अनेक रूपों वाली देवी धनधान्य देने वाली है । अंबा, पद्मावती, ईश्वरी नामों से जानी जाने वाली इस देवी का स्थान आबू नागौर, पावापुर, गुर्जरधरा है। इनके पूजनीय दिवसों के विषय में कवि लिखता है “पांचिम तो परमेसरी, चौदिस पुनिम चंद। आठिम नोमि अंबावि तूं, चौथि नमो चामुंड ।।47. इस प्रकार जैन देवी भक्ति रचनाओं में “चौथ माता जी रो छंद” रचना का भी महत्व है। लोकजीवन में इस रचना द्वारा चौथ माता के व्रत का महत्व स्थापित होता है।
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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