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________________ 58 राजस्थानी जैन साहित्य जैन कवि हेम को 17 वी शताब्दी का माना जा सकता है। कवि हेम ने आलोच्य रचना के आरंभ में पद्मावती का सम्बन्ध पार्श्वनाथ और धरणेंद्र से बताते हुए उसके गुणों एवं नामों का उल्लेख किया है। धरणीधर, रांणी, सोमझणी, निर्दोषी, शीलवती, जैनमाता, मातंगी, देवी पो आदि पर्यायों के कल्याणकारी स्वरूप की ही स्थापना की है। आलोच्य छंद कृति में देवी के रूप-सौंदर्य का वर्णन उपमानों एवं लालित्यमयी शब्दावली में किया है । इस प्रकार कवि हेमकृत पद्मावती छंद जहां धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, वहीं उसका साहित्यिक महत्व भी अवर्णनीय है। भारती अथवा भगवती छंद__ कवि संघविजय ने इस छंद की रचना विक्रम संवत् 1687 में की ।' सरस्वती स्तोत्र के रूप में इसका अति महत्व है, इसीलिये इसे भारती छंद भी कहा गया है । सम्पूर्ण स्तोत्र रचना 42 अड़यल छंदों में निबद्ध है। प्रारंभिक छंद (अनुष्टप) संस्कृत में कहा गया है और उपसंहार अन्य जैन ग्रंथों की परम्परानुसार “कलस” छंद में न कर प्राकृत के गाहा छंद3 में किया गया है। आलोच्य रचना में कवि संघविजय ने शक्ति महात्म्य के साथ ही सोलह विद्या-देवियों, चौबीस शासन देवियों, चौसठ योगिनियों एवं नवदुर्गाओं के नामों की स्तुति भी की है। कवि का कथन है कि सचराचर में व्याप्त देवी के असंख्य स्थान नाम हैं--- “जल थल मंगल वसई कैलासा, गिरिकंदर पुर पट्टण वासा, स्वर्ग मर्त्य पातालई जाणई, नाम अनेकई कविय वखाणई ।।" अन्य जैन कवियों की भांति ही संघविजय ने भी अपनी इष्ट देवी का स्वरूप निरूपण करते हुए उसके अप्रतिभ शृंगार को रूपायित किया है 1. संवत चंद्रकला अति उज्ज्वल, सायर सिद्धि आसी सुदि निर्मल। पूनिम सुरगुरुवार उदारा, भगवती छंद रच्यउ जयकारा ॥ (चंद्रकला-16, सायर-7, सिद्धि-8) एलड़ी. इन्स्टी, अहमदाबाद की प्रति) 2. सकल सिद्धि दातारं पावें नत्वा स्तवीभ्यहम् । वरदां शारदां देवों जगदानन्दकारिणीम् । 3. इय बहुभत्तिभरेणं, अडयलछंदेण संधुआ देवी। भगवई तुज्झ पसाया, होउ सया संधकल्लाणं ।।44
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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