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________________ राजस्थानी जैन साहित्य माताजी री वचनिका वचनिका राजस्थानी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है । यह संस्कृत के चंपू काव्य परम्परा से मिलती-जुलती विधा कही जा सकती है जिसमें गद्य-पद्य का मिश्रण होता है । किन्तु राजस्थानी वचनिका मुख्यतः गद्य साहित्य की विधा है जिसमें तुकान्तता को महत्व दिया गया है। राजस्थानी वचनिका साहित्य में उल्लेखनीय तीन रचनाओं में “माताजी री वचनिका” एक है। अन्य दो वचनिका रचनाएं हैं-शिवदास गाडण कृत अचलदास खीची री बचनिका तथा रतन सिंह महेसदासोत विरचित रतनसिह राठौड़ री वचनिका। इस कृति का सृजन नागौर के कुचेरा नामक स्थान में वि.सं. 1776 में खरतरगच्छीय जैन यति जयचन्द्र ने किया। इसका मूल आधार भी मार्कण्डेयपुराण में निहित “दुर्गासप्तशती"-आख्यान है। आरंभ में कवि ने देवी भक्ति संबंधी रचनाकारों की परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा है कि बाल्मीकि, वशिष्ठ, जयदेव और मार्कण्डेय जैसे महान विचारक, विद्वान एवं तपस्वी भी जिसकी महिमा को नहीं जान पाये, ऐसी देवी के गुणगान का मैं असफल प्रयास कर रहा हूं। इस निवेदन के उपरान्त कवि ने कालिका के विविध रूपों, चरित्रों और निवास स्थानों का विवरण देते हुए शुंभ-निशुंभ की कथा प्रस्तुत की है। गद्य-पद्य में निबद्ध इस वचनिका कृति में कवि ने देवी और राक्षसों के बीच हुए युद्ध का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण किया है । काव्य के अन्त में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की तथा अमानवीय वृत्तियों पर देव गुणों की विजय दिखायी कवि ने इस भक्ति सम्बन्धी रचना में अपने समय का भी वर्णन किया है। यह समय जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह का शासनकाल था। उन्हीं के शासन-प्रबन्ध और स्वयं का परिचय देता हुआ कवि लिखता है “संवत सतर छिहतरे आसु सुदि तिय तीय । मुरधर देस कुचोरपुर, रचै ग्रंथ करि पीय। मांण दुजोयण भीमजळ, इळ किसना अवतार । महाराज अगजीतसिंघ, राज तैण इधकार । गच्छ खरतर विद्या गुहिर, अमर आनन्द निधान । सिख चत्रभुज जैचंद सरिण, किद्ध वचनिका ज्यांन ।
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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