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राजस्थानी की जैन- प्रेमाख्यानक रचनाएं
9. प्रेमविलास प्रेमलता
लाहौर निवासी श्रावक जटमल नाहर की सात रचनाओं का उल्लेख मिलता है । इनमें से एक महत्वपूर्ण रचना “प्रेमविलास प्रेमलता " प्रेमाख्यान है । रचना की पुष्पिका के अनुसार कवि ने इसका निर्माण जलालपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में वि.सं. 1693 की भाद्रपद शुक्ला 4 रविवार को किया । रचना में योतनपुर के राजा प्रेम विजय की कन्या प्रेमलता और मंत्री मदन विलास के पुत्र प्रेमविलास के प्रेम की कथा कही गई है । प्रेमलता और प्रेमविलास दोनों जब एक ही पाठशाला में पढ़ते थे, तभी उनमें प्रेम पल्लवित हो गया । अपने पिता द्वारा निश्चित विवाह तिथि से पूर्व अमावस्या को प्रेमलता ने रात्रि को महाकाली मंदिर में प्रेमविलास के साथ गंधर्व विवाह कर भागने की योजना बनाई । योगिनी द्वारा पूर्व में सीखी गई जादुई विद्या का प्रयोग कर प्रेमलता अपने प्रेमी प्रेम विलास के साथ उड़कर रतनपुर पहुंची। वहां का राजा निःसंतान ही मर गया था । अतः देवदत्त हाथी द्वारा “मंगल कलश" प्रेमविलास पर डंडेल दिये जाने पर नगरवासियों ने उसे वहां का राजा बना दिया। दोनों बड़े आनन्द के साथ रहने लगे । इस प्रकार कथा में अलौकिक कथा प्रसंगों के होते हुए भी यह रचना अन्य जैन रचनाओं की तुलना में कम कथात्मक जटिलता लिए हुए है । कवि के पंजाब प्रवासी होने से कृति पर पंजाबी भाषा का प्रभाव भी लक्षित होता है ।
10. बछराज चौपई
आलोच्य रचना की कथा का आधार मध्यकालीन जनप्रिय लोक आख्यान बच्छराज से सम्बद्ध है। जैन कवि विनयलाभ ने इस कथा को चौबीस ढालों और चार खण्डों में निरूपित किया है । कवि ने इसकी रचना वि.सं. 1737 की पौष कृष्णा द्वितीया, सोमवार को मुलतान नगर में की। 2 कवि ने अद्भुत और शृंगार रस के माध्यम से शील की स्थापना की है । क्षित प्रतिष्ठ नगर के राजा वीरसेन की पटरानी से देवराज और दूसरी रानी से बच्छराज का जन्म हुआ । वीरसेन के स्वर्गस्थ होने
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1.
सं. भंवरलाल नाहटा—पद्मिनी चरित्र चौपई, सार्दूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर, पृ. 38-39, प्रथम संस्करण
संवत् सत्रै सैतीसे,पोस मास वदि बीज । तिण दिन कीधी चौपई, सोमवार तीय हीज ॥
श्री बछराज कुमार तणौ चिहं खंडे संबंध ।
2.
श्री मुलतान में प्रसिद्ध गणै प्रबंध ॥
- श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर, अजमेर, ह. ग्रं. लिपिकाल सं. 1889, पत्र 62