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________________ राजस्थानी जैन साहित्य पर, देवराज ने अपने सौतेले भाई बच्छराज को देश निकाला दे दिया और स्वयं राजा बन बैठा । बच्छराज अपनी माता धारणी के साथ उज्जयिनी पहुंचा और वहां लकड़हारे का काम करने लगा। अपने आचार्य द्वारा सीखी विद्याओं द्वारा उसने वहां के राजा को भी प्रसन्न कर लिया। राजा की इच्छानुसार उसने अनेक अद्भुत कार्य किए। यक्ष मंदिर से विद्याधरी की कंचुकी चुराकर रानी को भेंट दी । दत्तसेठ की पुत्री की मायावी पीड़ाओं से मुक्त कर उससे विवाह किया। विद्याधरियों के देश में जाकर स्वर्णचूला और रत्नचूला नामक विद्याधरियों से विवाह किया। एक दिन राजा इन विद्याधरियों को देखकर उन पर मोहित हो गया। उन्हें प्राप्त करने के लिए उसने बच्छराज को अपने मार्ग से हटाना चाहा। अतः नित्य नई असंभाव्य वस्तुओं की मांग करने लगा। किंतु बच्छराज अपनी कलाओं द्वारा उसे तुष्ट कर देता। अन्त में राजा अपनी दुष्टता पर लज्जित हुआ और उसने अपनी राजकुमारी का विवाह उसके साथ कर दिया। उधर देवराज के दुष्ट कार्यों से तंग आकर क्षित प्रतिष्ठ नगर की जनता ने बच्छराज को आकर राज्य संभालने का निमंत्रण दिया। बच्छराज ने जन-सहयोग से देवराज को पराजित कर अपना राज्य संभाला। यहीं कवि ने बच्छराज के पूर्व भवों का वर्णन किया है। 11. चन्द्रराज चरित्र___“चन्द्रराज चरित्र” के रचयिता मुनि कीर्तिविजय के शिष्य जैन मुनि मोहन विजय हैं । इस प्रेमाख्यान के अतिरिक्त मोहन विजय द्वारा रचित अन्य महत्वपूर्ण प्रेमाख्यानक रचनाएं हैं मानतुंग मानवती चरित्र (लि.काल वि.सं. 1887) और रतनपाल रतनावली रास (वि.सं. 1732) है। आलोच्य रचना का निर्माण कवि ने राजनगर में चौमासा बिताते हुए वि.सं. 1782 (पौष शुक्ला पंचमी) को किया। उपलब्ध हस्तलिखित प्रति के अनुसार उसकी कथा इस प्रकार है__आभा नगरी का राजा वीरसेन एक दिन घोड़े पर बैठकर महावन में पहुंचा। वहां उसने एक योगी के चंगुल से राजकुमारी चंद्रावती को मुक्त करवाकर उससे विवाह किया। सौतिया डाह से अभिभूत हो पटरानी वीरमती ने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी कि ग्लानिवश उसने चंद्रराज को राज्य सौंपकर वैराग्य धारण कर लिया। वीरमती ने अब चंद्रसेन की रानी गुणावली को अपने जादुई विद्याओं से वशीभूत किया। वह उसे एक दिन पेड़ पर बिठाकर विमलपुरी के राजा की कन्या 1. श्री जैन श्वेताम्बर मन्दिर, अजमेर, पत्र सं. 135
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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