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________________ 40 राजस्थानी जैन साहित्य राजकुमारी रत्नवती के साथ उसने अपने पुरोहित रुद्रदत्त को भी भेजा । मार्ग में वह उस पर मोहित हो गया और छल से उसे समुद्र में गिरा दिया। वह भी उत्ताल तरंगों से बचकर प्रियमेलकद्वीप पहुंच गई और धनवती के पास बैठकर मौन तपस्या करने लगी । राजकुमार सिंहलसिंह भी उत्ताल तरंगों से बचकर एक तापस के पास रहने लगा। वहीं तापस कन्या रुपमती उस पर मुग्ध हो गई। तापस ने उसका विवाह सिंहलसुत के साथ कर दिया । करमेक ने अनेक जादुई विधाए देकर विदा किया । दोनों प्रियमेलक द्वीप पहुंचे। वहां सिंहलसुत को एक सर्प ने डस लिया । वह कुरुप हो गया । रूपमती भी उसे पहचान न सकी और वह भी धनवती के समीप मौन व्रत लेकर बैठ गई । मौनव्रत की चर्चा होने लगी । एक दिन तीनों ने ही अपने मौनव्रत की कहानी कहकर अपना मौन तोड़ दिया। उधर देवयोग से राजकुमार को अपना वास्तविक रूप मिल गया ↓ अपने प्रिय को प्राप्त कर तीनों स्त्रियां अति प्रसन्न हुई । कुसुमपुर के राजा को भी जब सिंहलसुत का परिचय मिला तो उसने भी अपनी पुत्री का उनके साथ विवाह कर दिया। राजकुमार सिंहलसिंह अपनी चारों पत्नियों के साथ आनंदपूर्वक रहने लगा । 8. लीलावती चौपई गोरा-बादल पद्मिनी चरित्र चौपई के रचयिता हेमरतन सूरि की यह अन्य महत्वपूर्ण रचना है। हेमरत्न सूरि वाचक पद्मराज के शिष्य थे और प्राप्त रचनाओं के आधार पर उनका रचनाकाल वि.सं. 1616-1673 तक माना जा सकता है। आलोच्य कृति लीलावती चौपई का रचना काल वि.सं. 1673 है । कवि ने इसकी रचना पाली नगर में रह कर की । पाटन नगर के धना सेठ की पत्नी धनवंती की पुत्री लीलावती और कोशांबी के सागर सेठ के पुत्र श्रीराज के एकनिष्ठ प्रेम की कहानी ही इस रचना की विषय वस्तु है । कथा का अन्त हेमरत्न ने श्रीराज और लीलावती के पूर्व भव के वृतांत के साथ किया है । शील-धर्म की स्थापना करने वाली इस कथा को कवि ने दोहा - चौपाई के कड़वकों में बांधा है । काव्यत्व की दृष्टि से भी यह एक महती रचना सिद्ध होती है । राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, ह. ग्रं. 3500 (पुष्पिका) 1.
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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