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________________ 38 आधृत चर्चित चरित्र है, किन्तु उनके श्रमण संस्कारों पर बहुत कम कवियों ने अपनी लेखनी चलाई । इसीलिये कुशललाभ कृत तेजसार रास चौपई का महत्व स्वतः बढ़ जाता है । आलोच्य रचना में कवि कुशललाभ ने मुनि तेजसार के बाहुबल और प्रेम-क्रीड़ाओं की कथा कही है। तेजसार के जन्म एवं उनके पूर्वजन्म के वृत्तान्त द्वारा कवि ने जैन-समाज में दीप पूजन के महात्म्य को भी स्पष्ट किया है। कुशललाभ ने अनेक घात-प्रतिघात पूर्ण घटनाओं के माध्यम से तेजसार के श्रावक रूप की प्रतिष्ठा की है । जैन आचार संहित के आधार पर तेजसार की प्रणय कथाओं से उसके बाहुबल को पुष्ट करते हुए जैन धर्म में दीक्षा के महत्व को भी कवि ने अति सौष्ठव के साथ प्रस्तुत किया है। राजस्थानी जैन साहित्य 6. सुरसुन्दरी रास - स्थूलभद्र की प्रेम-कथा के समान ही अनेक जैन लेखकों ने सुरसुंदरी और अमरकुमार के प्रचलित प्रेमाख्यान को भी विविध रूपों में प्रस्तुत किया है । ऐसी ही रचनाएं हैं नयसुन्दर विरचित सुरसुंदरी रास (वि.सं. 1646 ) 1 एवं मुनि धर्मवर्धन कृत 'अमर कुंवर सुरसुंदरी चौपाई (वि.सं. 1736) 12 आलोच्य रचना सुरसुंदरी रास में कवि नयसुंदर ने श्रेष्ठी पुत्र अमर कुमार और राजकुमारी सुरसुन्दरी की प्रेमकथा को बड़े ही रोचक रूप में प्रस्तुत किया है। दोनों एक ही पाठशाला में विद्यारत हैं। किसी दिन स्त्री-पुरुष के अधिकारों के वाद-विवाद के कारण दोनों में अनबन हो जाती है । किन्तु गुणों की दृष्टि में रखते हुए राजा अपनी पुत्री सुरसुन्दरी का विवाह अमर कुमार के साथ कर देता है । सहज गृहस्थ जीवन भोगते हुए ही अचानक अमरकुमार को अपना देश छोड़ सिंहलद्वीप की ओर जाना पड़ता है। इस संकट के समय सुर-सुंदरी भी उसी के साथ चली जाती है। 1 मार्ग में पीने के पानी को प्राप्त करने को जब अमर कुमार बढ़ता है, तभी उसे सुरसुंदरी द्वारा बचपन में किए अपमान का स्मरण हुआ। वह प्रतिशोध लेने के लिये सुरसुंदरी को वहीं अकेला सोये हुए छोड़ गया । नींद टूटने पर विकल हुई शीलव्रत की रक्षा करती हुई वह पुरुष वेश में चम्पावती के राजा के पास पहुंची। वहां वह बीमार राजा को स्वस्थ करके उससे आधा राज्य प्राप्त करती है। तभी अमरकुमार भी वहा पहुंच जाता है । दोनों पुनः मिल जाते हैं 1 1. 2. जैन श्वेताम्बर मन्दिर, अजमेर में सुरक्षित प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, ह. ग्रं. 27380
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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