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________________ राजस्थानी की जैन-प्रेमाख्यानक रचनाएं ___37 कवि हीरानंद ने सम्पूर्ण काव्य में राजकुमारी सोहग सुंदरी (सोभाग्य सुंदरी) एवं उज्जयनी के श्रेष्ठी पुत्र धनसागर की प्रेमकथा द्वारा तप के महत्व को प्रतिपादित किया है । नायिका के प्रेम की तड़पन' को दृष्टि में रखते हुए प्रो. म.र. मजमूदार का कथन है, “विद्याविलास राजा पुरुष ने बदले तेमनो वात मां विद्याविलासिनो ओवी नायिका बनी जाय छे ते खूब रमुज उत्पन्न करे छै ।"2 __रचना साहित्यिकता के साथ ही तद् युगीन समाज को भी पूर्णतः अभिव्यक्ति दे रही है। उस युग की कलात्मक प्रवृत्तियों, राजदरबारी संस्कृति, नारी मनोविज्ञान, व्यापार और वाणिज्य आदि के अनेक सुंदर दृश्य इसके महत्व को द्विगणित करते हैं। 5. तेजसार-रास चौपाई राजस्थानी प्रेमाख्यान लेखकों में जैन कवि कुशललाभ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । कुशललाभ ने जैन एवं जैनेतर विषयों पर प्रेमाख्यानक रचनाओं का निर्माण किया। माधवानल कामकंदला चौपई और ढोला-मारवणी चौपई कवि की जैनेतर विषयक प्रेमाख्यानक रचनाएं हैं । कुशललाभ ने अपने जीवनकाल में जैनाख्यानों को लेकर निम्नलिखित प्रेमाख्यानों का सृजन किया1. जिनपालित जिन रक्षित संधि गाथा (वि.सं.1621) 2. तेजसार रास चौपई (वि.सं.1624) 3. अगड़दत्तरास (वि.सं.1625) भीमसेन हंसराज चौपई (वि.सं. 1643) 5. स्थूलिभद्र छत्तीसी एवं 6. गुणवती सुंदरी चौपई । जैन-श्रमण-संस्कृति में मुनि तेजसार एक काल्पनिक और जादुई कथानक पर 1. निसि भरी सोहग सुंदरी रे,जोइ वालंभ वाट; नींद्र न आवई नयण ले रे, हिअउई खरउ उचाट ।। 2. गुजराती साहित्य ना स्वरूपो-मध्यकालीन पद्य स्वरूप, पृ. 126 इस रचना का कुछ सूचियों में गुणसुंदरी चउपई' नाम मिलता है । डा.कस्तूरचंद कासलीवाल द्वारा निर्मित सूची में 'कनक सुंदरी चउपई' नाम से वर्णित है। किन्तु यह कुशललाभ की संदिग्ध रचना है।
SR No.022847
Book TitleRajasthani Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmohanswarup Mathur
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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