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54 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
नामकरण सुमति किया । "
अभिनन्दन स्वामी तथा सुमतिनाथ जी के निर्वाण का अन्तरकाल नौ लाख करोड़ सागरोपम का था । सुमतिनाथ जी की आयु चालीस लाख पूर्व की थी शरीर की ऊँचाई तीन सौ धनुष थी तथा स्वर्ण कान्ति वाले थे। दीक्षा पर्याय द्वादश पूर्वांक (दस करोड़ आठ लाख वर्ष) कम एक लाख पूर्व की होगी ।" "
सुमतिनाथ जी के कुमार- काल के दस लाख पूर्व बीत जाने पर उनका राज्याभिषेक किया गया । राज्य करते हुए उन्तीस लाख पूर्व और बारह पूर्वांक बीत जाने पर उन्होंने दीक्षा धारण की। भगवान ने वैशाख सुदी नवमी को मघा नक्षत्र में सहेतुक वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ली। उन्होंने छद्मस्थ अवस्था में 20 वर्ष बिताए। फिर चैत्र शुक्ला एकादशी को सूर्यास्त के समय केवलज्ञान हुआ
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धर्म - परिवार : सुमतिनाथ भगवान के सात ऋद्धियों के धारक अमर आदि एक सौ सोलह गणधर थे। दो हजार चार सौ पूर्वधारी उनके साथ रहते थे। दो लाख चौपन हजार तीन सौ पचास शिक्षकों के साथ थे, ग्यारह हजार अवधिज्ञानी थे, तेरह हजार केवलज्ञानी तथा अठारह हजार चार सौ विक्रिया ऋद्धि के धारण करने वाले, दस हजार चार सौ पचास मनः पर्ययज्ञानी थे। बीस हजार दो सौ चौरासी वादी थे । इस प्रकार कुल तीन लाख बीस हजार मुनि उनके संघ को सुशोभित कर रहे थे । अनन्तमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ उनकी अनुगामिनी थीं। तीन लाख श्रावक और पाँच लाख श्राविकाएँ उनके अनुयायी थे ।
निर्वाण : केवलज्ञान के पश्चात 18 क्षेत्रों में तीर्थंकर सुमतिनाथजी ने विहार करके धर्म प्रचार किया। जब आयु का 1 मास शेष रहा तब उन्होंने सम्मेद शिखर पर जाकर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमा योग धारण कर लिया। वहीं चैत्र शुक्ला एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में शाम के समय प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया।"
6. पद्मप्रभुजी :
जम्बूद्वीप की कौशाम्बी नगरी में इक्ष्वाकु वंशी काश्यपगोत्री धर नामक एक बड़े राजा हुए। उनकी सुसीमा नाम की पटरानी ने चौदह स्वप्न देखे । नौ मास पश्चात कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन लाल कमल की आभा वाले पुत्र को जन्म दिया । इन्द्रों ने मेरु शिखर पर ले जाकर क्षीर सागर के जल से उनका जन्माभिषेक किया। पद्म (कमल) के समान आभा के कारण उनका नामकरण पद्मप्रभु किया गया। सुमतिनाथ और पद्मप्रभु के निर्वाण का अन्तरकाल नब्बे हजार कोटि सागरोपम था। पद्मप्रभु की आयु तीस लाख पूर्व की थी, देह दो सौ पचास धनुष ऊँची थी। 215
पद्मप्रभु की आयु का जब एक चौथाई भाग पूर्ण हुआ तो उनका राज्याभिषेक