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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता 53
4. अभिनन्दन जी :
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अयोध्यापति इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगौत्री संवर राजा तथा उनकी सिद्धार्था पटरानी के पुत्र अभिनन्दन जी चौथे तीर्थंकर हुए। माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन अदिति योग में प्रभु का जन्म हुआ । पचास लाख पूर्व उनकी आयु थी, साढ़े तीन सौ धनुष ऊँचा शरीर था । सुवर्ण की कांति के धारक थे। तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ जी तथा अभिनन्दन जी के निर्वाण का अन्तराल दस लाख करोड़ सागरोपम था।
अभिनन्दन जी साढ़े बारह लाख पूर्व कुमार अवस्था में रहे। उसके पश्चात् उनके पिताश्री ने उन्हें साम्राज्य सौंप दिया। उन्होंने साढ़े छत्तीस लाख पूर्व तक सुख पूर्वक साम्राज्य लक्ष्मी का उपभोग किया। उसके पश्चात् उनकी आयु के आठ पूर्वांग शेष रहे तब उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ । अतः जितेन्द्रिय भगवान ने माघ शुक्ला द्वादशी के दिन सायंकाल में एक हजार राजाओं के साथ अग्रउद्यान में जिन - दीक्षा धारण की। उसी समय उन्हें मन:पर्यय ज्ञान हो गया। 2
अभिनन्दन जी दीक्षा के पश्चात् 18 वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में मौनपूर्वक रहे । उसके पश्चात् पौष शुक्ला चतुर्दशी के दिन शाम के समय सातवें पुनर्वसु नक्षत्र में उन्हें असन वृक्ष के नीचे दीक्षावन में ही केवलज्ञान प्राप्त हुआ ।
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धर्म परिवार : केवलज्ञान के पश्चात् तीर्थंकर अभिनन्दन जी ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। उसमें वज्रनाभि आदि एक सौ तीन गणधर, दो हजार पाँच सौ पूर्वधारी, दो लाख तीस हजार पचास शिक्षक, नौ हजार आठ सौ अवधिज्ञानी, सोलह हजार केवलज्ञानी, उन्नीस हजार विक्रिया ऋद्धि के धारक, ग्यारह हजार छह सौ पचास मनः पर्ययज्ञानी और ग्यारह हजार प्रचण्ड वादी थे। इस प्रकार उनके 3 लाख की श्रमण संपदा थी । मेरुषेणा आदि तीन लाख तीस हजार छह सौ आर्यिकाएँ उनके शासन में थी। तीन लाख श्रावक तथा पाँच लाख श्राविकाएँ उनकी स्तुति करते थे।
निर्वाण : केवलज्ञान के पश्चात् प्रभु समस्त आर्यावर्त में दूर-दूर तक धर्म प्रचार करते हुए लम्बे समय तक विचरण करते रहे । अन्त में सम्मेदगिरि पर जाकर वहाँ एक मास तक ध्यानारूढ़ हुए। वहीं वैशाख शुक्ला षष्ठी के दिन प्रातः काल पुनर्वसु नक्षत्र में अनेक मुनियों के साथ मोक्ष रूप परमद को प्राप्त किया ।
5. सुमतिनाथ जी :
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जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अयोध्या के राजा मेघरथ तथा उनकी पटरानी मंगला पुत्र के रूप में तीर्थंकर सुमतिनाथ जी का जन्म हुआ । चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन चित्रा नक्षत्र तथा पितृ योग में तीन ज्ञान से युक्त प्रभु सुमतिनाथ जी का जन्म हुआ। 64 इन्द्रों ने बालक का सुमेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करके उनका