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________________ जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता* 55 किया गया। अनेक वर्षों तक राज्यलक्ष्मी का भोग करने के पश्चात् कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन शाम को चित्रा नक्षत्र में पद्मप्रभुजी ने मनोहर वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण की। छह माह तक मौनपूर्वक छद्मस्थ अवस्था में विचरण करते हुए कर्म निर्जरा की। उसके पश्चात् चैत्र शुक्ला पूर्णमासी के दिन चित्रा नक्षत्र में क्षपक श्रेणी पर आरुढ़ होकर प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया और चार घातिया कर्मों का नाश किया। धर्म परिवार : पद्मप्रभु के 110 गणधर थे। 2300 पूर्वधारी थे, 2,69,000 शिक्षक थे 10,000 अवधिज्ञानी थे तथा 12,000 केवलज्ञानी थे 16,800 विक्रिय ऋद्धिधारी थे, 10,300 मनः पर्यायज्ञानी थे तथा 9,600 वादी थे। इस प्रकार सब मिलाकर 3,30,000 मुनि सम्पदा थी। रात्रिषेणा आदि 4,20,000 आर्यिकाएँ थीं 3,00,000 श्रावक तथा 5,00,000 श्राविकाएँ थी। असंख्यात देव-देवियाँ तथा संख्यात तिर्यंच भी उनकी सेवा में थे। निर्वाण : केवलज्ञान के पश्चात् अनेक वर्षों तक भव्य जीवों को प्रशस्त मोक्ष मार्ग दिखाते रहे। पद्मप्रभु की व्रत (दीक्षा) पर्याय सोलह पूर्वांग (तेरह करोड़ चवालीस लाख बरस) कम एक लाख पूर्व की थी। जब आयु का एक माह शेष रहा तो सम्मेदशिखर पर जाकर एक हजार राजाओं के साथ प्रतिमायोग धारण किया। फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी के दिन शाम के समय चित्रा नक्षत्र में चतुर्थ शुक्ल ध्यान धारण करके प्रभु मोक्षगामी हुए। 7. सुपार्श्वनाथजी : जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के वाराणसी नगर के राजा सुप्रतिष्ट इक्ष्वाकु वंशीय एवं काश्यप गोत्रीय थे। उनकी रानी पृथ्वीषेणा ने ज्येष्ठशुक्ला द्वादशी के दिन अग्निमित्र नामक शुभ योग में तीर्थंकर सुपार्श्व को जन्म दिया। उनकी देह की कान्ति, स्वर्ण जैसी थी, आयु बीस लाख पूर्व की थी और शरीर की ऊँचाई दो सौ धुनष थी। दीक्षा पर्याय बीस लाख पूर्वांग (16 करोड़ 80 लाख वर्ष) कम एक लाख पूर्व थी। छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु जी तथा सातवें सुपार्श्वनाथजी के निर्वाण का अन्तरकाल नौ हजार करोड़ सगरोपम था।" कुमार सुपार्श्व पाँच लाख पूर्व का कुमार काल व्यतीत करने के पश्चात राजा बने और अनेक वर्षों तक सुखपूर्वक साम्राज्य किया। उनकी आयु बीस पूर्वांग कम एक लाख वर्ष शेष रह गई तब उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ। तब सुपार्श्वनाथजी ने ज्येष्ठशुक्ला द्वादशी को सायंकाल में विशाखा नक्षत्र में सहेतुक वन में जाकर 1 हजार राजाओं के साथ दीक्षा के पश्चात् छद्मस्थ अवस्था में नौ वर्ष तक मौन रहे। उसके पश्चात सहेतुक वन में ही फाल्गुन कृष्णा षष्ठी के दिन सायंकाल में विशाखा नक्षत्र में प्रभु को केवलज्ञाान हुआ।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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