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[ २९ ] दिगम्बर-यदि वे मुनि कत्था को प्रयोग कर लेते तो उन की यह दशा नहीं होती बे कच्चे होंगे।
जैन-महानुभाव ? दवाई प्रयोग से जितेन्द्रियता आती है कि मनके मारने से ? दवाई से प्राप्त की हुई बाह्य कृतिम जितेन्द्रियता से क्या लाभ ?
दिगम्बर-दिगम्बर शास्त्रों में दिगम्बर मुनि को नवम गुण स्थानक तक पुं० स्त्री और नपुं० इन तीनों वेद का उदय माना है जिनमें पुं० वेद अन्य गोचर है,
अतः उसे प्रयोग से दबा कर जितेन्द्रिय बनना आवश्यक है
जैन-ऐसी जितेन्द्रियता दिगम्बर को ही मुबारक हो, नवम गुण स्थान वर्ती दिगम्बर मुनि में तीनों वेद का उदय मानना और श्वेताम्बर मुनि पर सीर्फ वस्त्र के ही जरिये झूठा आक्षेप करना, यह नितान्त मताभिनिवेश ही है।
- दिगम्बर-श्वेताम्बरीय आचलक्य करूप में भी वस्त्र का निषेध स्पष्ट है।
जैन-इस कल्प से निषेध नहीं किन्तु विधान ही किया गया है।
जो मानता है कि-अपरिग्रहता से वस्त्रों का सर्वथा निषेध हो जाता है । उसको इस कल्प की आज्ञा से ठीक उत्तर मिल जाता है।
इस अचेलक कल्प के स्वतंत्र विधान से निर्विवाद सिद्ध है किअपरिग्रहता में वस्त्र की व्यवस्था होती नहीं थी अतः इस खतंत्र कल्प के द्वारा नयी व्यवस्था करनी पडी । सचमुच अपरिग्रहता माने अममत्व के द्वारा वस्त्र के विधि-निषेध की व्यवस्था कैसे