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' [ २८ ] महानुभाव ! इस अपरिग्रहता से तो यही चरितार्थ होता है किगुड़ खाना और गुल गुले से परहेज करना अर्थात्-उपधि रखना और वस्त्र माम का परहेज करना
दिगम्बर--वस्त्र वाला मुनि लजा परिषह को नहीं जीत सकता है।
" जैन--परिषह २२ हैं, इनमें लज्जा नाम का कोई परिषह नहीं है। दिगम्बर ने अपनी मनवाने के लिये यह नया तुक्का चला
.. दिगम्बर-वस्त्र तो मुनि के लिये पुरुषेन्द्रिय के विकार को छीपाने का साधन है । माने वस्त्र वाला मुनि जितेन्द्रिय नहीं है। दिगम्बर मुनि ही जितेन्द्रिय है।
जैन-दिगम्बर मुनि कितने जितेन्द्रिय हैं उनके कई प्रमाण "जैन जगत्" की फाइल में प्रकट हो चुके हैं । पूर्वोक्त दिगम्बर मुनि जय सागर जी ने क्या २ गुल खेला है तथा जबलपुर में दिगम्बर मुनि मनीन्द्र सागर के संघ के तीनों मुनियों की कूप पतन
आदि कैसी २ शोचनीय दशा हुई है यह जैन जगत् से छिपा नहीं है मगर वे भी बेचारे करे क्या ? मनुष्य को नवम गुण स्थानक तक वेदोदय होता है, जो दिगम्बर होने मात्र से दबता नहीं है। दिगम्बर के प्रायश्चित ग्रंथ भी दिगम्बरी दशा में चतुर्थव्रत दूषण का स्वीकार करते हैं देखो
जंता रूढ़ो जोणीं ॥ ४६ ॥ अण्णेहिं अमुणिंद ॥ ५१ ॥ परेहिं विएणाद मेक वारम्मि ॥ ५२ ॥ इंदिय खलणं ज़ायदि०॥४८॥
(भा इन्द्रनन्दि कृत छेनपींकम)