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जैन - ठीक है, दिगम्बर के दूसरे भद्रबाहु स्वामी याने श्वेताम्बर मतानुसार बज्रस्वामी के बाद यह भेद पडा है । जिसका समय वि० सं० १३६ है । विचार भेद होना, जोड़ने का प्रयत्न करना और आखिर में अलग २ हो जाना, इसमें तीन वर्ष व्यतीत हो जाय यह स्वाभाविक है । इस विषय के लिये दोनों में खास मत भेद नहीं है ।
दिगम्बर — इस मत भेद की जड़ क्या है ?
जैन — मत भेद की उत्पति के लिये तो प्रसंग आने पर बताया जायगा । समुचित यह मानना होगा कि वस्त्र के निमित्त यह मत भेद खड़ा हुआ है यानी जैन मुनि वस्त्र पहिने कि न पहिने ?
इस वस्त्र के ही झगड़े में "जैनधर्म" यह नाम लुप्त हो गया और वस्त्र के कारण ही दिगम्बर और श्वेताम्बर ये दो नाम प्रसिद्ध हुए । अम्बर के निषेध में इतना श्राग्रह था कि उसके लिये जैन नाम को हटा कर दिगम्बर नाम ही अपना लिया और उसको अच्छा माना ।
वस्त्र के निषेधकार को अपनी मान्यता की पुष्टि के लिये स्त्री मोक्ष, केवली भुक्ति, द्रव्य शरीर वचन और मन के प्रयोग, औदारिक शरीर, परिषह, साक्षरी वाणी इत्यादि अनेक बातों का निषेध करना पड़ा । मगर प्रधान दिगम्बर आचार्य इन सब निषेधों को स प्रमाण मानते नहीं हैं । जो कि आपके प्रश्नों के उत्तर में क्रमशः बताया जायगा ।
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