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मुनि उपधि-अधिकार
दिगम्बर — पांच महाव्रत वाले साघु परिग्रह के त्यागी होते
हैं । अतः उन्हें परिग्रह नहीं रखना चाहिये वस्त्र पात्र वगैरह का त्याग करना चाहिये ।
जैन --- आप परिग्रह का लक्षण क्या मानते हैं ?
दिगम्बर -- दिगम्बर शास्त्र में परिग्रह का स्वरूप इस प्रकार है !
१ मूर्छा परिग्रहः
( आ० श्री उमास्वाति कृत तस्वार्थ सूत्र अध्याय ७ सूत्र १७ ) २. ममत्तिं परिवज्जामि, गिम्मम त्ति मुवदिट्ठो |
( आ० कुन्द कुन्द कृत भावप्राभृत गाथा ५० )
मूच्छादि जणण रहिदं, गेहदु समणोयदिवि अपं ( भ० कुन्दकुन्द प्रवचन सार, चरणानु योग चूलिकागाथा २२ ) ४. पाखंडियलिंगेसु व, गिहलिंगेसु व बहुप्पयारेसु ।
कुव्वंति जे ममत्ति, तेहिं ण णादं समयसारं ॥ ४४३ ॥ टीकांश - निर्गन्थ रूप पाखंडि द्रव्य लिंगेषु कौपीन चिन्हांदि गृहस्थलीगेषु बहु प्रकारेषु ये ममतां कुर्वन्ति ।
याने जो किसी भी लिंग ऊपर ममत्व रखता है वह परमार्थ को जानता नहीं हैं ।
`( आ० कुन्द कुन्द कृत समय प्राभृत गा० ४४३ ) ५ या मूर्छानामेयं विज्ञातव्यः परिग्रहो ह्येषः ।
मोहोदयादुदीर्णो, मूर्छा तु ममत्व परिणामः। १११ ।