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उपवासः प्रदातव्यः षष्टमेव यथाक्रमम् ॥३३॥
टीका-चतुर्विधे चतुष्प्रकारे अशने पाने खाये स्वाद्ये च । उपवासः क्षमणं ॥
(प्रायश्चित्त चूलिका श्लो. ३३) . उपवास में गरम पानी पीने से उपवासका आठवां हिस्सा कम हो जाता है । +
(भा० सकल कीर्तिकृत प्रश्नोत्तरोपासकाचार
पौषधोपवासकथन, चर्चासागर, चर्चा ३५.) दिगम्बरोंकी तपस्याकी परिभाषामें छठ्ठ अठ्ठम वगैरह शब्दप्रयोग किये गये हैं इसी प्रकार सामान्य तपस्या के लीए "योगधारण" इत्यादि शब्दप्रयोग भी किये गए हैं !*
___ +ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी "अंग्रेजी जैन गजट' (जुलाई का सार) शीर्षक लेख में लिखते हैं कि:
"नोट-भादों मास में जैन समाज में स्त्रीपुरुष बहुत उपवास करते हैं सो लाभप्रद है, ऊपर के वर्णन से यह सिद्ध है कि-वार प्रकार के आहारको त्यागते समय शुद्ध प्रासुक पानी रख लेना चाहिये ।
यह बात अनुभवसे सिद्ध है कि-पानी के बिना उपवासके दिन बहुत आकुलता हो जाती है। धर्मध्यान भी कठिनता से होता है। श्वेताम्बर समाज में पानी को रख कर उपवास करने का रिवाज है, सो ठीक विदित होता है। जिनको आकुलता बिल्कुल न होवे तो पानी भी न लेवें परन्तु डाक्टरी सिद्धान्त में पानी लेना लाभकारी है। गृहस्थ को हर अष्टमी चौदशको पानी लेते हुए उपवास करना ही चाहिये ।" (ता. २१-७-३९ वी. सं. २४६४ श्रा. व. ९ का जैनमित्र, पु. ३९
.. अं. ३७ पृ. ५९४-५९५) * आदिपुराणादि ग्रन्थोमें छह महिना तपश्चरण के पश्चात् पारणा के लिए चर्याको जाने का उल्लेख है और अंतराय होने पर पुनः छह महिना का योग धारण करने का विधान किया गया है। इस तरह आदि पुराणादि ग्रन्थों से भी एक वर्ष में पारणा होने की बात सिद्ध हो जाती हैं। (पं. परमानन्द जैन शास्त्रीका " त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें उपलब्ध ऋषभदेव
चरित्र" लेख, अनेकांत व० ४, कि० ५. पृ० ३१० की टीपणी.)