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सारांश यह है कि केवली भगवान को भूख प्यास वगैरह होते हैं और वे आहार पानी लेते हैं ।
दिगम्बर - केवली भगवान किस कारणसे आहार लेवे ? दिग-म्बर शास्त्रमें आहार के त्याग और स्वीकार के लिये निम्न कारण माने हैं ।
छहिं कारणेहिं असणं, आहारंतो वि आयरदि धम्मं । छहिं चैव कारणेहिं द, णिज्जुहवंतो वि आचरेदि ॥ ५९ ॥ दु, वेण वैयावच्चे, किरियाहाणेय संजमट्टाए । तथापण धर्मचिन्ता, कुञ्जा एदेहिं आहारं ॥ ६० ॥ आदके उवसरंगे, तिरिक्खणे बंभचेरगुतीओ। पार्णिदया तेबहेऊ, सरीरपरिहार वुच्छेदो ॥ ६१ ॥ टीका - तितिक्षणायां ब्रह्मचर्यगुप्तेः सुष्ठु निर्मलीकरणे,
सप्तमधातुक्षयाय आहारच्युच्छेदः ||६१|| ण बलाउसादु अहं, ण सरीरस्सुवचयड तेजङ्कं । णाण संजमठ्ठे, झाणङ्कं चेव भुंजेजो ||३२||
(मूलाचार परिछेर ६ पिंडविशुद्ध अधिकार ) जैन - केवली भगवान शरीर, संयम, धर्म और शुक्ल ध्यान आदि के कारण आहार लेते हैं, और आहारत्याग भी करते हैं ।
दिगम्बर - दिगम्बरीय शास्त्रमें तीन आहार व चार आहार के त्यागरूप तपस्या है, जिसके नाम चतुर्थ भक्त छह अट्टम दशम वगैरह हैं | देखिये
(१) खवणं छट्ठ ट्ठम दसम खमणं, खमणं च छट्ट अट्ठमयं । खमणं खमणं खमणं, छटुं च गदेस्सिमो छेदो ॥ ७८ ॥ ( आ• इन्द्रनन्दिकृत छेपींडम् ) (२) रत्ति गिलाण भत्ते चउविह एकम्हि छदुखमणाओ । टीका - रात्रो व्याधियुते चतुर्विधाहारे ||२९||
( दिगम्बरीय छेद शास्त्रम् )