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________________ समुद्धात भी कराता है। वेदनीय मामूली नहीं है, यदि मामूली होता तो सातवें गुणस्थान से ही वेदनीयकी उदीरणा की क्यों मना कर दी गई ? मामूली था तो उसकी उदीरणा भी कुछ नहीं करने पाती। मगर उदीरणा का वहां से निषेध है, अतः वेदनीयकी ताकतका परिचय हो जाता है जिसकी उदीरणा का पहिले से निषेध है वह कर्म मामूली कैसे माना जाय ? बह अपना कार्य अवश्य करता है और उसका फल अवश्य ही भोगना पडता है। ११ परिषह भी उपचार से नहीं हैं, सिर्फ उपचार से ही बताना था तो २२ ही क्यों न बताये ? वास्तव में ११ परिषह भी उपचारसे नहीं हैं; परिषह परिषह के रूप में ही होते हैं और वे भी अपना कार्य अवश्य करते हैं। ___ आचार्य पूज्यपादजीने भी परिषहों का उपचार होना लिख दिया, किन्तु वह दलील कमजोर थी अत एव उन्होंने "न सन्तीति" कल्पना भी बताई, अन्ततः "एकादश जिने” इस पाठ के सामने वह कल्पना भी निराधार बन जाती है। वास्तव में केवली भगवान को ११ परिषह हैं और वे सहने पड़ते हैं। दिगम्बर-मोहनीय कर्म न होने से वे सताते नहीं हैं। जैन-अशाता वेदनीय व परिषह अपना २ कार्य करते हैं किन्तु उनसे केवली भगवान को ग्लानि नहीं होती है। कारण ? अरतिका अभाव है। किन्तु इससे यह नहीं माना जाय कि केवली भगवान को अशाता व परिषह नही होते हैं। दिगम्बर-कर्मप्रकृतिओं का आपस २ में संक्रमण भी होता है तो अशातावेदनीय का शाता के रूप में संक्रमण हो जायगा। जैन-दिगम्बराचार्य नेमिचन्द्रसूरिने १३ वे गुणस्थान में संक्रमण की मना की है। (गोम्मटसार, कर्मकांड, गा० ४४२) अतः वहां संक्रमण मानना ही भूल है। अशाता वेदनीय अशाता रूप से ही उदयमें आवेगी, और उसको वैसे ही. भोगनी पडेगी।
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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