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________________ १८ यदि केवली भगवान आहार लेते हैं तो क्या उक्त्य तप भी करते हैं? .. जैन-हा, वे आहार के अभावरूप तप भी करते हैं। दिगम्बर-केवली भगवान के आहार और तप के लिये शास्त्रप्रमाण दीजिये! - जैन-दिगम्बर शास्त्रों में केवली भगवान के आहार और तपके प्रमाण ये हैं। (१) सर्व मान्य आ० श्री उमास्वातिजी कहते हैं- एकादश जिने । (तत्त्वार्थ० अ० ९ सू०११) केवली भगवान को ११ परिषह होती हैं माने शुद्ध आहार पानी मिलने पर क्षुधा और प्यास का शमन होता है। (२) आ० कुन्दकुन्द बताते हैं कि गइ इंदियं च काए, जोए वेए कसाय णाणे य । संजम दंसण लेसा, भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ॥३३॥ टीका-आहारे आहारकद्वयमध्येऽर्हत आहारकानाहारकद्वयं । यहाँ टीकाकार ने आहारक शब्द बना लिया है वह उसका अनाभोग है। वास्तविक बात यह है कि-केवली भगवान आहार लेते हैं, नहीं भी लेते हैं, आहारी है, अनाहारी भी हैं ॥ आहारो य सरीरो, तह इंदिय आण पाण भासा य । पज्जत्तिगुणसमिद्धो, उत्तमदेवो हवइ अरुहो ॥३४॥ पंच वि इंदिय पाणा, मण वय कारण तिनि बलपाणा, आणप्पाणप्पाणा, आउग पाणेण होति दह पाणा ॥३५॥ (बोधप्रामृत ) (३) आ० समन्तभद्रजी लिखते हैं कि बाह्यं तपः परम दुश्चरमाचरंस्त्वं । आध्यात्मिकस्य तपसः परिबृंहणार्थम् ।। ध्यानं निरस्य कलुषद्यमुत्तरस्मिन् । ध्यानद्वये ववृतिषेऽतिशयोपपन्ने ॥८३॥ (बृहत्स्वंयभूस्तोत्रम् )
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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