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पंचम अध्याय : १०५
-'पटभेदन' कहा गया है वहाँ अनेक स्थानों से विक्रयार्थ माल के गट्ठर आते थे। जहाँ पर व्यापारी अपनी वस्तुओं का भण्डारण करते थे उस स्थान को 'संवाह' कहा जाता था ।२ संवाह में सामान गिरवी रखकर ब्याज पर ऋण प्रदान किया जाता था ।३ कई व्यापारियों का निवासस्थान 'निगम' कहा जाता था। निगम भी दो प्रकार के होते थे१-संग्राहिक और २-असंग्राहिक । संग्राहिक निगम में सामान गिरवी रखने और ऋण देने का काम होता था और असंग्राहिक निगम में उधार देने के साथ-साथ अन्य व्यापारिक काम भी होते थे। यात्रा के समय व्यापारी जिस स्थान पर पड़ाव डालते थे उसको 'निवेश' कहा जाता था। वह नगर जो जलमार्गों पर स्थित थे उन्हें जलपत्तन कहा जाता था। ऐसे नगर जो जल और स्थल दोनों मार्गों से जुड़े होते थे और जहाँ व्यापार के लिये दोनों मार्गों से माल लाने की सुविधा थी उन्हें 'द्रोणमुख' कहा जाता था भृगुकच्छ और ताम्रलिप्ति द्रोणमुख थे। ___नगरों और गाँवों के बाजारों में उपभोग की सभी सामग्रियाँ उपलब्ध थीं। दशवकालिकसूत्र से ज्ञात होता है कि नगरों के मुख्य राजमार्गों और चौराहों पर सभी प्रकार की खाने-पीने की वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती थीं। वहाँ पर सत्तू, चूर्ण, तिलपट्टी, जलेबी, लड्डू, मालपुए आदि यथोचित मूल्य पर बेचे जाते थे। चौराहों पर पके हुये मांस, मछली और अंडों की भी बिक्री होती थी।१० दुकानों पर दैनिक उपभोग की वस्तुएँ-घी, तेल, धान्य, भाण्ड, घड़े, पीढ़े आदि के अतिरिक्त सोने-चांदी का भी १. कश्यप जगदीश “हिन्दी अनुवादक' मिलिन्दपञ्हो, पृ० १-४ २. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १०९२,
निशोथचूणि, भाग ३, गाथा ४१२८ ३. संवासे अणुवट्टवितेण, निशीथचूणि, भाग २, गाथा ३७६३ ४. निगम नेगमवग्गो, बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १०९ । ५. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १११० ६. निवेसो सत्थाइजत्ता वा
वही; भाग २, गाथा १०९१ ७. वही, भाग २, गाथा १०९० ८. दोणमुहं जल-थलपहेणं
वही, भाग २, गाथा १०९० ९. तहेव सतुचुण्णाइ, कोलचुण्वांइ आवेण सुक्कुलिं पाणियं पूर्व
दशकालिक ५/७१, ७२ १०. विपाक ३/२६; ४/१६