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१०४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
" नौशत्या” कहा जाता था । ' जहाँ बर्तनों की बिक्री होती थी उसे 'पाद - भूमि' या " वनभूमि" कहा जाता था । जहाँ सुरा, मधु, सीधु, खडग, मच्छडियं आदि विभिन्न प्रकार की मदिराओं की बिक्री होती थी उन्हें 'मज्जावण' या 'पानभूमि' कहा जाता था । जहाँ सब मिष्ठान्नों की बिक्री होती उसे " पुडियघर" कहते थे । इसी प्रकार 'चक्रिकशाला' में तेल, 'गौलिशाला' में गुड़, 'दोसिशाला' में दूष्य, 'सौतियशाला' में सूत, 'बोधियशाला' में तन्दुल (चावल) बेचे जाते थे ।" 'कुत्रिकापण' में सब प्रकार की छोटी-बड़ी उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त हो जाती थीं । राजा श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार के दीक्षोत्सव पर वहाँ से रजोहरण और भिक्षा पात्र मंगवाये ये थे । कुत्रिकापण की तुलना आजकल के बड़े-बड़े 'डिपार्टमेन्टल स्टोर' के साथ की जा सकती है । अलग-अलग वस्तुओं की अलग-अलग दुकानों और बाजारों के अस्तित्व से प्रतीत होता है कि व्यापार बृहद्स्तर पर होता था ।
स्थानीय व्यापार का अन्य केन्द्र व्यापारिक मण्डियाँ थीं जहाँ व्यापारियों को समस्त सुविधायें प्रदान की जाती थीं । निशीथ चूर्णि से ज्ञात है कि ताम्रलिप्ति और आनन्दपुर ईसा की सातवीं शताब्दी की प्रमुख व्यापारिक मण्डियाँ थीं । ' ताम्रलिप्ति के कुछ प्राचीन उल्लेख भी प्राप्त होते हैं । कुवलयमालाकहा से ज्ञात होता है कि दक्षिणापथ में प्रतिष्ठान और सोपारक, मण्डियों के रूप में प्रसिद्ध थे । जिस व्यापारिक मण्डी में विभिन्न दिशाओं से विक्रय हेतु माल लाया जाता था उसे 'पुटभेदन' कहा जाता था । बौद्धग्रन्थ मिलिन्दप हो में 'सागल' (स्यालकोट) को
१. सत्थिए मुसलिमादियं निशीथचूणि, भाग ३, गाथा ३०४७ २ . वही, २ /२५३४
३. वही, २ / २५३४
४. पोतिए खज्जगविसेसो - - निशीथचूर्ण ३/३०४०
५. व्यवहारसूत्र ९ / १९-२९
६. ज्ञाताधर्मकथांग १ / १२२, बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, गाथा ४२१६
७. सूरि उद्योतन - कुवलयमालाकहा, पृ० ६५
८. निशीथचूर्णि भाग २, गाथा २००३
९. नाणादिसागयाणं भिज्जंति पुडा : उ जत्थ भंडाणं । पुडभेयणं
बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १०९३;
निशीथचूर्णि भाग ३, गाथा ४१२८