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________________ बंदेलखंड की चित्रकला में लोक परम्परा का निर्वहन / 269 क्षेत्रीय हैं और विशेष समुदाय द्वारा ही विशेष आयोजनों पर पूजे जाते हैं। यद्यपि उनकी आकृति किसी देवता, पशु, मानव आदि आकृतियों से मिलती-जुलती होती है किन्तु शास्त्रोक्त नहीं होती अपितु लोकमान्यताओं पर निर्मित होती है। विद्वानों ने सूर्य-चंद्र-वृक्ष-भूमि-पर्वत एवं नदी आदि को प्रकृति परक, भूत-प्रेत, राक्षस अथवा दानव, अनिष्टकारी तत्वों एवं यक्ष-गंधर्वो को अतिप्राकृत देवता, लक्ष्मी, कुबेर, नाग व मणिभद्र इत्यादि, को समृद्धि परक एवं धन का देवता, गौरी, गणेश, दूलादेव तथा हरदौल को विवाह परक देवता, राम, शिव, वासुदेव अथवा कृष्ण, शारदा माई तथा इन्द्र आदि को वर-प्रदाता देवता; गणेश, संकटा देवी, पितृदेव को विघ्नहरण देवता, बीजासेन तथा षष्ठि देवी को संतान रक्षक देवता; दुर्गा, काली, चण्डिका, शिव, हनुमान व भैरव देव आदि को शान्ति परक देवता के रूप में उल्लेखित किया है। बुंदेलखंड में ग्राम देवी के रूप में पूजी जाने वाली भुइंयादेवी अर्थात् भूदेवी या भूमिदेवी की तुलना ऋग्वैदिक सौभाग्य, सौंदर्य एवं समृद्धि परक श्रीदेवी से की गई है। बुंदेला शासकों के वंश का बुंदेला नाम भी धार्मिक भावना से ओत-प्रोत होकर देवी (विन्ध्यदेवी) को अपने रक्त तिलक लगाने के परिणाम स्वरूप, 'रक्त बूंदो' के कारण बुंदेला नाम की उत्पत्ति मानी जाती है। इस प्रकार मातृ-पूजन से ही बुंदेलों की लोक धर्म-परम्परा का अभ्युदय होता है। कालान्तर में महाराजा मधुकर शाह की कृष्ण (वासुदेव) की धार्मिक मान्यता और उनकी रानी गणेश कुंवरी की श्री राम के प्रति आस्था व विश्वास बुंदेलों की धार्मिक परम्परा को बढ़ाते एवं स्थायित्व प्रदान करते हैं। इन्हीं आस्थाओं के परिणाम स्वरूप ही बुंदेलखंड में मातृका पूजन एवं श्रीराम व श्रीकृष्ण को पूजे जाने का आधिक्य है। साथ ही, दतिया और ओरछा के विभिन्न महल, मंदिर एवं अन्य भवनों में श्री राम एवं कृष्ण से संबंधित विभिन्न प्रसंगों को विस्तार से तथा लक्ष्मी को अधिकता से चित्रित किया गया है। इनके अतिरिक्त वर-प्रदाता एवं शांति परक देवता के रूप में शिव, दुर्गा, काली, हनुमान एवं भैरव देव आदि भी चित्रित हुए हैं इसी प्रकार, विघ्नहरण देव गणेश की स्थापना बुंदेलखंड ही नहीं अपितु भारत के अधिकतम क्षेत्रों में प्रचलित है। संभवतः इसी आस्था और विश्वास को लेकर बुंदेलखंड की ऐतिहासिक चित्रावलियों में भी प्रवेश द्वार पर गणपति को उनकी रिद्धि एवं सिद्धि पत्नियों के साथ चित्रित किया गया है। यद्यपि अधिकतर चित्रों में रिद्धि-सिद्धि पति सेवा में चंवर डुलाती अथवा उनकी पूजा करती हुईं चित्रित की गई हैं। इस प्रकार के चित्रों में रिद्धि-सिद्धि कभी राजस्थानी वेशभूषा में लहंगा चुनरी पहने अथवा लांग वाली साड़ी पहने चित्रित की गई हैं। (चित्र फलक-1) बुंदेलखंड की स्त्रियों में लांग वाली साड़ी का प्रचलन है साथ ही मराठों में भी नौ हाथ की लांग वाली साड़ी पहनने का प्रचलन मिलता है। आज भी बुंदेलखंड एवं ग्वालियर के चितेरे शादी विवाह, नौ दुर्गा, दशहरा, दीवाली इत्यादि आयोजनों में गणपति को, रिद्धि-सिद्धि सहित चित्रित करते हैं। अधिकांश चित्रों में लांग वाली साड़ी का चित्रण किया जाता है। बुंदेलखंड में मुख्यतः दो प्रकार के चित्र मिलते हैं- ऐतिहासिक चित्र जिनमें मानव के तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक जीवन का चित्रण है, तथा दूसरे प्रकार के चित्र धार्मिक भावना से अनुप्रेरित होकर धार्मिक, आध्यात्मिक चित्र बने जो उसके अव्यक्त भावों या डर, प्रेम, प्रार्थना, मनौती एवं उसके काल्पनिक देवता को प्रसन्न करने से सम्बन्धित थे। संयोगवश अनुभूत परिणामों के आधार पर कर्म काण्डों व प्रतीकों को संयुक्त कर व्रत, त्यौहार, मनौतियों, अनुष्ठानों की अनवरत श्रृंखला बनाई। इस प्रकार लोक परम्परा की अनवरत धारा का लोकान्वेषण हुआ। लोक परम्परानुसार चित्रण का आधार 'प्रतीक' भी रहे हैं। जिनके आधार पर वह कथा कहानियों, मिथकों, किवदंतियों को विस्तार से समेट कर स्वयं का अभिव्यक्त कर सकें। यहां तक कि प्रतीकों का एक शास्त्र ही निर्मित हो गया। विविध प्राचीन ग्रन्थों में एक प्रकार के प्रतीकों के सम्बन्ध में विशद वर्णन एवं जानकारी प्राप्त होती है।
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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