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________________ 408 / Jijñāsā प्रतिहार काल में सामन्तो के कुछ पद तो वंशानुगत थे जबकि कुछ पदों पर नियुक्ति शासक द्वारा होती थी। शासक सामन्तो पर अपने अधिकारियों के माध्यम से नियंत्रण रखता था । उदाहरणार्थ चालुक्य सामंत अवनिर्मा द्वितीय ने अपने स्वामी महेन्द्रपालदेव के अधिकारी तंत्रपालधिका की अनुमति से ग्रामदान किया था। सामंत राजा के अधीन कार्य करते थे और उसकी आज्ञा का पालन भी करते थे राजा की आज्ञा पालन करवाने के लिए अधिकारी नियुक्त थे | 31 | राजदरबार छोटे बड़े सामन्तो अनेक प्रकार के मंत्रियों राज्याधिकारियों से भरा रहता था। कौटिल्य प्रशासन में राजा की सहायता के लिए मंत्री मण्डल को अनिवार्य बताते है प्रतिहार शासको के दरबार में भी मंत्रिन् (मंत्रियों) का महत्वपूर्ण स्थान था । इनके प्रमुख को मुख्यमंत्री प्रधानामात्य, महामंत्री कहा जाता था। मंत्री का पद महत्वपूर्ण था समस्त राजकीय अधिकार सेना (कटंक) सभी उसके आदेशों का पालन करते थे। यद्यपि राजा पुरोहित, राजामात्य, कुमारामात्य की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं था प्रतिहारों के बजाय राष्ट्रकूट अभिलेखों से सूचना मिलती है कि मंत्री सामन्तो के साथ मिलकर राजा के लिए समस्या बन सकते थे। महेश्वर सूरी कृत ज्ञानपंचमी कथा से महत्वपूर्ण सूचना मिलती है कि वास्तव में मंत्री ही इस लोक का शासक है क्योंकि सारी कटंक ( सेना एवं नौकर शाह) उसी की आज्ञा का पालन करती है। यदि विपत्तियों में बचाने के लिए मंत्री न हो तो राजा का नाम ही समाप्त हो जाये। प्रधानामात्य, मंत्री या महामंत्री का पद वंशानुगत था राजपुरोहित आध्यात्मिक मामलों का अधिकारी जो संभवतः राजा का आध्यात्मिक सलाह कार था दोनों पद वंशानुगत थे। राजा को प्रशासनिक कार्यो मे सहयोग के लिए मंत्री तथा उच्च अधिकारी नियुक्त किये गए थे। प्रतिहार अभिलेखों के महासंधिविग्रहिक को युद्ध और शांति का मंत्री कहा जा सकता है। वह राजकीय आलेखों, घोषणाओं दान पत्रों का तथा विदेशी राजाओं के पास भेजे जाने वाले पत्रों का भी मसविदा तैयार करता था। यहां तक कि यह राज्य में होने वाले विद्रोहों, उपद्रवों, सामन्तों के विद्रोहों को भी चतुराई से शांत करता था । इसी तरह महाअक्षपटलिक और इसके अधीन अक्षपटलिक नामक अधिकारी होता था मेवाड़ में यह पद वंशानुगत था बहुत संभव है प्रतिहार राज्यों में भी यह वंशानुगत रहा होगा।" किन्तु योग्यता के आधार पर ही यह पद उसी वंश के दूसरे व्यक्ति को मिलता था। राज्य में वित्त का यह प्रमुख अधिकारी था, जो आयव्यय का लेखा जोखा रखता था अभिलेखों (गहड़वाल एवं चालुक्य) में उसे राज्य के सरकारी लेखो का प्रधान निरीक्षक कहा गया है।" दान पत्रों का निबन्धन भी उसके कार्यालय में होता था।" भाण्डागरिक राजकीय कोषागार तथा आभूषणो का मुख्य अधिकारी था, जिसे अमात्य कहा जाता था। 13 महाप्रतिहार दौवारिक दरबार में आने जाने वालो पर नियंत्रण रखता था महाप्रतिहार का पद महत्वपूर्ण था। प्रतिहार अभिलेखों में उष्प्रभट्ट नामक महाप्रतिहार को महासामत या महासामन्ताधिपति कहा गया है।" महादण्डनायक प्रमुख सैनिक अधिकारी होता था। प्रशासनिक कार्य के साथ-साथ राजा का महत्वपूर्ण कार्य न्याय करना भी था किन्तु प्रतिहार काल में इस सम्बन्ध में कई अधिकारी नियुक्त थे। राजा प्रमुख न्यायधीश था इसके अतिरिक्त सहायतार्थ महादण्डनायक प्रमुख न्यायिक अधिकारी था। धर्मस्था या धर्मस्थेय राज्य के सर्वोच्च महत्वपूर्ण पद पर था जो राजा को न्याय सम्बन्धी कार्यों में सहयोग करता था दण्डधरणिक-दण्ड देने वाला, चौरोधरणिक डाकुओं पर नियंत्रण रखने वाले, दण्डिक जेलर जैसा अधिकारी, दशापराधिक दस प्रकार के अनुसंधान करने वाला, दण्ड निर्धारित करने वाला अधिकारी होता था। सभी अधिकारी न्याय व्यवस्था में आगे थे। व्यवहारिक न्यायिक अधिकारी था। वह दानपत्रों को देखता, भूमि सम्बन्धी प्रक्रिया पर नजर रखता, भूमि को उसके सही हकदार को दिलवाता था। * राज्य के वित्तिय प्रबन्धन के लिए महाभौगिक राजकीय कोष का प्रमुख अधिकारी होता था महामुद्राधिकृत राजकीय मुद्रणालय का अध्यक्ष होता था । गुर्जर प्रतिहार शासक बड़े साम्राज्य पर शासन करते थे जिसे प्रशासन
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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