SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्व मध्यकालीन उत्तर भारत की राजनीतिक व्यवस्था / 409 की दृष्टि से विभिन्न ईकाइयों में बांटा गया था। भक्ति, मण्डल, विषय, पथक, चतुरशतिका, द्वादशक में बांटा गया था । प्रतिहार अभिलेखों में उदम्बुर को विषय, कालजर को मण्डल, जबकि कान्यकुन्ज को मुक्ति कहा गया है। " श्रावस्ती एवं गुर्जरात्रा भूमि को भुक्ति कहा है। दण्डवानक वालीयक को विषय, कालजर श्रावस्ती को मण्डल कहा गया है काशी को पारपथक ऐसा लगता है भुक्ति प्रशासन की सर्वोच्च ईकाई थी जैसे दिल्ली देश की राजधानी है और राज्य भी इन इकाइयों में अमात्यों या विभागीय अध्यक्षों की सहायता के लिए अनेक छोटे अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी । नियुक्त तथा अनियुक्त अथवा तंत्रियुक्तक इनका उल्लेख अभिलेखों में हुआ है। महनस नियुक्तक को शाही रसोई का निदेशक नियुक्त किया गया था ऐसा लगता है कि विभाग के अध्यक्ष को नियुक्तक कहा जाता था। बड़े अधिकारियों के निजी सहयोगियों को अनियुक्त या तंन्नियुक्त कहा जाता था।" व्यवहारिन न्यायाधिकारी था जिसका कार्य था दानपत्रों को देखना यदि कोई अपहरण कर्ता किसी भूमि को अधिकृत करता है तो उसे मूलदान प्राप्त कर्ता को दिलवाना तथा ग्रामाग्रमिक यह अधिकारी राज्य या किसी क्षेत्र विशेष के बाहर और अन्दर आने जाने वालो का अनुमति पत्र देता था तथा स्वयं संदेश वाहक का कार्य भी किया करता था, महाभोगिक राजकीय कोष का प्रमुख अधिकारी होता था तो महामुद्राधिकृत राजकीय मुद्रणालय का अध्यक्ष । 1 12 वीं शताब्दी के चाहमान तथा चालुक्य अभिलेखों में भी सचिवालय को श्री करण कहा जाता था । केन्द्रीय शासनालय में लेखों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था थी जहां भूमिदान और अग्रहार आदि के ताम्रपत्र भविष्य के छानबीन के लिए सुरक्षित रखे जाते थे। यदि कभी दान पाने वाले व्यक्ति परस्पर अपने गांवों को बदलना चाहते थे तो उस अवसर पर पटटो में भी परिवर्तन किया जाता था।" स्थानीय संस्थाओं तथा देवालयों के हिसाब किताब की जांच के लिए प्रतिवर्ष केन्द्रीय शासनालय से विशेष कर्मचारी भेजे जाते थे। प्रतिहार राज्य के एक लेख से पता चलता है कि राजा के आदेश से कुछ विषयों की जांच के लिए एक अधिकारी उज्जैन गया ।" केन्द्रीय सरकार और कार्यालय प्रांतीय एवं स्थानीय शासन का निरीक्षण और नियंत्रण करते थे । आधुनिक शासन सचिवालय की तरह रहे होंगे, ऐसा प्रतीत होता है। 1 गुर्जर प्रतिहार अभिलेखों में उपलब्ध विभिन्न साक्ष्यों से ऐसा लगता है कि इस समय तीन प्रांतीय क्षेत्र थे; कन्नौज, श्रावस्ती एवं प्रतिष्ठान । इनका प्रशासनिक क्षेत्र काफी विस्तृत था। चार मण्डल कालजर श्रावस्ती, सौराष्ट्र तथा कौशाम्बी का उल्लेख मिलता है राजशेखर सौराष्ट्र को जनपद कहता है अतः स्पष्ट है ये महत्वपूर्ण क्षेत्र रहे होगें। इसके अतिरिक्त पांच विषयों (जिले) का नाम आता है उदम्बुर, दण्डवान वालियक, वाराणसी, असुरक" अतः प्रतिहार काल में प्रशासनिक ईकाइयां निम्न प्रकार थी साम्राज्य के पूर्व में श्रावस्ती तथा वाराणसी, दक्षिण में कालजर, केन्द्र में कौशाम्बी, पश्चिम में राजपूताना, दण्डवानक था।" ग्वालियर का सामरिक महत्व था अतः कोट्रपाल के अधीन रखा गया था जबकि सौराष्ट्र को सांमतशासक के अधीन रखा गया था। अतः इतने बड़े साम्राज्य को प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से विभिन्न ईकाइयों में यथा भुक्ति, मण्डल, विषय, पथको; चतुरशीतिक तथा द्वादशक में बांटा गया था। गुप्तकाल में भक्ति, मण्डल, विषय, ग्राम जैसी प्रशासनिक ईकाइयों के नाम मिलते है इनके अधिकारियों को भोगिक, भोगपति अथवा उपरिक महाराज कहा गया है । दशरथ शर्मा जी के अनुसार प्रतिहार काल में प्रशासनिक ढांचा और उनके अधिकारी परम्परागत प्रशासन से अलग थे। प्रतिहार अभिलेखों में उदम्बुर विषय कॉलजर मण्डल कान्यकुब्ज को मुक्ति कहा गया है। इसी तरह श्रावस्ती गुर्जराजा भूमि को भुक्ति दण्डवानक वलीयक को विषय और कांलजर तथा श्रावस्ती को मण्डल भी कहा गया है। पारपथक दशपुर को पश्चिमी पथक कहा गया है। ऐसा लगता है कि भुक्ति मण्डल और विषय यह क्रम था । कान्यकुब्ज स्पष्ट है साम्राज्य के प्रशासन में उच्च स्थान पर स्थापित भुक्ति थी जो जिलो और
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy