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________________ 400 / Jijñāsū का प्रयास किया गया। कृषक वर्ग की परिस्थितियों में परिवर्तनशीलता गुणवत्ता के आधार पर 13 वीं शताब्दी में साक्ष्यों में देखने को मिलता हैं तथा भारत में तुर्क सत्ता के आगमन के साथ ही बाहरी स्रोतों से प्राप्त तकनीकों के प्रवेश का रास्ता खोल दिया । " सल्तनतकालीन भारत में कृषि सम्बंधी प्रौद्योगिकी परिवर्तन देखने को मिलता हैं। जल के अनेक स्रोतों थे वर्षा का जल, प्राकृतिक स्रोत था। इसके साथ ही तालाब, कुऐं बावड़ी, जिसमें पानी को भरते थे। इसके अलावा नदियाँ पानी का स्रोत थी कुएं के पानी को बाहर निकालने में प्रौद्योगिकी का विकास हुआ।" प्रारम्भ में कुएं के पानी को साधारणतय बाल्टी के रस्सी बांधकर खींचा जाता था जिसमें किसी तरह की प्रौद्योगिकी तकनीक नहीं थी।" आवश्यकतानुसार पानी उपयोग के लिए निकाला जाता था इससे छोटी खेती भी की जाती थी इसमें हस्तभ्रम से कार्य होता था। दूसरी प्रौद्योगिकी विकास कर्म में कुऐं पर चर्खी लगाकर रस्सी के द्वारा पानी खींचा जाता था । इसमें मानव श्रम कम लगता था इसी क्रम में तृतीय विधि उत्तरी भारत में चमड़े के बैग इस्तेमाल किये जाने लगे इससे अधिक पानी निकाला जा सकता था और श्रम भी कम लगती थी। इससे गहरे कुओं से पानी निकाला जा सकता था लेकिन यह श्रम साध्य काम अधिक था ? चौथी विधि अर्धयांत्रिक प्रकृति की थी इसमें एक अविलम्ब लठ्ठा या पेड़ के तने की धरनी से एक लम्बी रस्सी बांधी जाती थी, जो झुलने की स्थिति में रहती थी इससे चमड़े के बड़े थैले को रस्सी से बांधा जाता था जिसके दूसरे हिस्से को कुऐं के ऊपर लटकी हुई बल्ली के एक सिरे से बांधा जाता था इस बल्ली के दूसरे सिरे से एक प्रतिभार लटकाया जाता था जो चमड़े के थैले से अधिक भारी होता था इस भार तथा प्रतिभार के दोनों किनारों पर होने से बल्ली के मध्य में आलम्ब उत्पन्न होता था इस तकनीक के इस्तेमाल करने से व्यक्ति को कम ऊर्जा लगानी पड़ती थी। संस्कृत में इसे तुला कहा गया हैं तथा बंगाल व बिहार में इसे ढेकली या लाट / लठ्ठा कहा जाता था।" दक्षिण भारत में कबलाई विधि कहते थे।" पांचवी विधि पानी निकालने में साखियाँ अथवा अराहट थी। 13 वीं 14 वीं शताब्दी में उत्पादन के तकनीक संसाधनों में प्रयाप्त रुप से अभिवृद्धि हुई जिनमें मुख्य श्री अर्घट में दांतेदार पहिए के साथ कुप्पों की एक श्रृंखला जोड़ी जाती थी जिसे पशु शक्ति के द्वारा चलाया जाता था ।" यह एक जल चक्र था जिसे जलयंत्र भी कहा जा सकता हैं क्योंकि इसमें गियर प्रणाली की व्यवस्था थी जो एक तकनीक रूप से उन्नत दशा में थी।" इस तरह से कुऐ सिंचाई के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं। दिल्ली सल्तनतकाल में कृषि सिंचाई क्षेत्र को बढ़ाने के लिए ग्यासुद्दीन तुगलक ने पहली बार नहर सिंचाई को प्रोत्साहन दिया। बरनी इस बारे में लिखता है कि ग्यासुद्दीन तुगलक (1320-25) के काल में कई नेहरे सिंचाई के लिए कई मिलों लम्बी खोदी गई, लेकिन विशेष नाम का उल्लेख नहीं करता। इसी बारे में अमीर खुसरों लिखता हैं कि गाजी मलिक ने नहरों का निर्माण मुलतान क्षेत्र में करवाया, जो रवि व झेलम से जुड़ी थी। इब्नबतूता लिखता हैं कि शेख सिहाबुद्धीन अल खुरासानी दिवान-ए-मुस्तखराज था, जिसने बिना जोते जाने वाली भूमि के लिए यमुना नदी से (दिल्ली से) 6 मील दूरी पर एक नहर का निर्माण करवाया था, जो अकाल को रोकने के लिए बनवायी गई थी इससे कृषि की पैदावार बढ़ाई जा सकी। फिरोज तुगलक (1351-86 ईस्वी) ने नहरों का जाल बिछाया जिनमें हिसार तक बहने वाली एक नहर यमुना से निकाली गई दो अन्य नहरें रजब्वाह और उलूगखानी नहर थी। फिरोजशाही नहर सतलुज से निकाली गई थी. एक नहर काली नदी से शुरु होकर दिल्ली तक आती और यमुना में मिलती थी एक और नहर पूर्वी पंजाब में घग्घर नदी से निकाली गई थी। इससे खरीब के साथ रबी की फसल में भी वृद्धि हुई।" जिससे उत्पादन बढ़ा इसके साथ ही किसानों को भूमि आवंटित की गई जिससे सतलज, दिल्ली तथा दोआब, समाना व हांसि क्षेत्र में खरीब की पैदावार की जा सकी।
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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