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सल्तनत काल में प्रौद्योगिकी विकास : ऐतिहासिक सर्वेक्षण / 399
49. सल्तनत काल में प्रौद्योगिकी विकास : ऐतिहासिक सर्वेक्षण
सी. एल. सिहाग
सल्तनत काल में प्रौद्योगिकी विकास के विषय में तत्कालीन, फारसी और अरबी ग्रन्थों का उपयोग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालता है। बहुत कुछ उपयोगी सामग्री उस काल के स्थानीय संस्कृत तथा क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य में उपलब्ध है। कुछ विदेशी यात्रियों के वृतान्त से भी उस समय के भारत में प्रौद्योगिकी विकास का पता चलता हैं।
भारत में सल्तनत काल में हुए प्रौद्योगिकी विकास पर जो भी शोध प्रकाशित हुआ है, उनमें मुगलों के योगदान पर अधिक चर्चा मिलती हैं। जहाँ तक "हिस्ट्री ऑफ साइस एण्ड टेक्नोलॉजी इन इण्डिया (संपादित जी.कुप्परम एव के. कुमदमनी) में भी कई लेखों की श्रृंखला में सल्तनतकाल के विशेष संदर्भ में अल्प लेखन हुआ है। यदि इरफान हबीब ने अपने अनेक शोधो में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की विस्तार से चर्चा की हैं तो मुगलकाल पर अधिक बल दिया और यदि चक्रवर्ती और बी.डी. चट्टोपाध्याय ने लेखनी चलाई तो पूर्व मध्यकाल के संदर्भ को अधिक ध्यान में रखा। इसी क्रम में मैंने सल्तनतकालीन भारत में प्रौद्योगिकी विकास पर शोध पत्र लिखने का प्रयास किया हैं। क्योंकि सल्तनतकाल की प्रौद्योगिकी विकास पर पूर्ण कार्य नहीं हुआ हैं। मेरे इस शोध पत्र का उद्देश्य सल्तनतकाल में विभिन्न क्षेत्रों में हुए प्रौद्योगिकी विकास को केन्द्रीत कर प्रस्तुत करना है।
भारत पर मुस्लिम विजय ने देश के कृषि, उद्योगों तथा व्यापार वाणिज्य के क्षेत्र में किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न नहीं किया था उस समय गावों व शहरों में कारीगरी व शिल्प प्रचलित व्यवसाय का अस्तित्व बना हुआ था। उनके उपयोग में आने वाले कृषि यंत्र व अन्य उपकरणों में भी तकनीकी विकास नहीं हुआ था। किसी तरह के बड़े उद्योगों का विकास भी नहीं हुआ था। अधिकांश उद्योग स्थानीय परम्परागत तकनीक पर निर्भर थे। जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते आ रहे थे कृषि व सिंचाई के क्षेत्र में परम्परागत विधि का प्रयोग होता आ रहा था लेकिन तुर्क आक्रमण के बाद इस क्षेत्र में कुछ आमूलचूल परिवर्तन हुए। सल्तनतकाल में राज्य की आय का मुख्य स्रोत था भूमिकर जो कृषि भूमि से लिया जाता था।' चौदहवीं शताब्दी का एक दस्तावेज कहता हैं कि यह सही हैं कि किसान स्वतंत्र पैदा होता हैं लेकिन कर देने की उसकी बाध्यता की यह आवश्यकता हैं कि वे उन गांवों से बंधकर रहते हैं जहाँ वे अपनी जमीन जोत रहे हैं।
कृषि उत्पादन के लिए स्थानीय स्रोतों के रुप में कुएँ, बावड़ी व तालाब इत्यादि का प्रचलन था, लेकिन अधिकांश कृषि वर्षा पर निर्भर थी, जो अनिश्चित थी कृषक वर्ग कृषि उत्पादन से अपने परिवार का जीविकोपार्जन करता था और सामाजिक जीवनयापन करता था उपभोक्ता वर्ग भी इन्हीं के उत्पादन पर निर्भर था। ऐसी स्थिति में कृषि के उत्पादन में वृद्धि करने व भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए जल की पूर्ति के लिए अन्य साधनों का इस्तेमाल करने