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________________ 398 / Jijñāsā इस क्षेत्र में प्रचलित है। इस क्षेत्र के कुंओं की वास्तुकलां दर्शनीय है। इनकी कलात्मक मीनारें आलंकरण एवं कुओं के सौन्दर्य्य उत्कृष्टमय निर्माण कला के परिचायक है। शेखावाटी अंचल में किसी भू-भाग में आप दृष्टि डालेंगे तो आपको पनघट शैली वहाँ स्थित गढ़ व हवेलियों के समरूप खड़ी दिखती हैं कुंओं के निर्माण में आर्थिक सहयोग यहाँ जन्मे उद्योगपतियों, व्यापारियों का ज्यादा रहा है। तब कलात्मक मीनारों वाले बड़े और गहरे कुएँ बनवाना सर्वोपरि महत्व का कार्य समझा जाता था।" यह आश्चर्यजनक है कि यह कुएँ मार्गों के साथ-साथ ही दिखाई देते हैं। व्यापारी हो, अथवा सामान्य यात्री सभी ने इस सुविधा का लाभ उठाया होगा। कुओं के साथ बावड़ियों और तालाबों का भी निर्माण करवाया गया। खेतड़ी पहाड़ी पर स्थित भूपालगढ़ के नीचे एक विशाल एवं भव्य तालाब है। जिसके निर्माणकर्ता पन्नालाल शाह थे । यहाँ वैसे तो सैंकड़ों, तालाब बावड़िया निर्मित हैं जो वास्तु कला की दृष्टि से अनोखे है जब देश में रिलीफ सोसाइटी जैसी कोई संस्था नहीं थी, तब ये सेठ साहुकार लोग आपदा के समय प्रजा की सहायता करने के लिये सजग होकर उदारता के साथ आगे आते थे। राजस्थान में जब छपनियां अकाल पड़ा तब रामगोपाल गनेड़ी ने फतेहपुर के बीहड़ में अकाल सहायता के नाम पर तालाब, कुंआ, धर्मशाला बनवाकर अभावग्रस्तों को राहत देने आगे आये । छपनियां अकाल की भीषणता के उस समय बने गीत "छपनियां फेरू मत आजे म्हादे देश" । आज भी यदा कदा सारंगी पर लौक गीत, गाने वाले भोपो से सुनने को मिलते है । सन्दर्भ ग्रन्थ सूचि 1. मुखर्जी, अनन्तलाल, जयपुर राज्य का भूगोल, पृ. 17. जयपुर। 2. भगवती, पं. शास्त्री रामचन्द्र शेखावाटी प्रकाश, पृ.4 3. प्रकाश, टी. सी., शेखावाटी वैभव, शेखावाटी इतिहास शोध संस्थान, शिमला (झुन्झुनु) 1993, पृ.20 4. पर्यटन अवलोकन - राष्ट्रीय पर्यटन दिवस विशेषांक, जनवरी 2008, पृ. 43 5. शर्मा, गोपीनाथ, सोशल लाइफ इन मेडिवल राजस्थान, पृ 319, ( आगरा 1968 ) 6. कर्नल टॉड, एनल्स ऑफ राजपूताना, खण्ड-2, पृ.996 (लन्दन, 1832 ) 7. दि इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इण्डिया, जिल्द XXI, पृ. 132 8 वही, पृ. 133 9 वही, जिल्द XIII, पृ. 392 10. जकात बही नं. 81. वि.सं. 1867 (1750 ई.) बीकानेर रिकॉर्डस, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर -- 11 सनद परवाना बही नं.9, 1769 ई. जोधपुर रिकॉर्ड्स, राज्य, अभि., बीकानेर। 12. कागदो-री-बही नं.6, वि.सं. 1839 (1782ई) बीकानेर रिकॉर्ड्स, रा. राज्य, अभि. बीकानेर । 13. जकात बही नं. 25 वि.सं. 1829 (1772 ई.) बीकानेर रिकॉर्ड्स. रा. रा. अभि. बीकानेर। 14. कागद-री-बही नं. 47. वि.सं. 1897 (1840ई.) बीकानेर रिकॉर्डस, रा. रा. अभि. बीकानेर। 15. शर्मा, दशरथ, राजस्थान थ्रू दी एजेज, प्रथम भाग, पृ. 492, जोधपुर 1958 16. सावामंडी सदर बही नं. 4, वि.सं. 1807-10, बीकानेर रिकॉर्डस रा. रा. अभि. बीकानेर। 17. सनद परवाना बही नं. 25, वि.सं. 1838, जोधपुर रिकॉर्ड्स रा. रा. अभि. बीकानेर । 18. पाउलेट, गजेटियर ऑफ बीकानेर स्टेट | 19. सूबारे सरकार-ने परगना - री. विगत नं. 226/3, बीकानेर 20. टॉड, वही, खण्ड 2, पृ. 1248-50 21. मिश्र, रतनलाल, गनेडीवाला गौरव ग्रन्थ, पृ. 6. दिल्ली, 1993 22. शर्मा, पं. झाबरमल, सीकर का इतिहास, पृ. 48 कलकत्ता 1922. 23. शर्मा, प झाबरमल, खेतड़ी का इतिहास, कलकत्ता, 1927. पृ. 40 24. निर्विरोध तारादत्त, शेखावाटी (सांस्कृतिक इतिहास के विविध आयाम) जयपुर, 1988, पृ. 5 25. मिश्र, रतनलाल, गनेडीवाला गौरव ग्रन्थ पृ. 262, दिल्ली, 1993
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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