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Jijñāsā
103. ऋग्वेद 10.109.4, भीमाजाया ब्राह्मणस्योपनीता दुर्धां दधाति परमे व्योमन्। 104. ऋग्वेद 10.154.2 105. ऋग्वेद 10.154.3-5 106. ऋग्वेद 10.107.2 107. ऋग्वेद 10.95.18, प्रजा ते देवान हविषा यजाति स्वर्ग उत्वमपि मादयासे। 108. ऋग्वेद 10.107.2 109. ऋग्वेद 10.125.1.2,8 110. ऋग्वेद9.86.15 111. ऋग्वेद 10.125.6 112. ऋग्वेद 10.153.5 113. ऋग्वेद 10.107.7, आत्मा दक्षिणां वर्म कृणुते विजानन्।