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परम्परा एवं आधुनिकता बनाम इतिहास बोध : भारतीय संदर्भ
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आज के संदर्भ में परम्परा एक मोहक शब्द है, साथ ही भ्रामक भी, क्योंकि इसे मनचाहा अर्थ देकर गलत सही कितने ही प्रयोग किए जा सकते है। संस्कृति, जातीय अस्मिता को भी परम्परा का पर्यायवाची मान लिया गया है। नए की स्थापना के लिए पुरानी परम्पराओं का ध्वंस आवश्यक माना गया। परम्परा तो किसी युग की सांस्कृतिक पहचान हो सकती है। परम्परा संस्कृति का वह भाग है, जिसमें भूतकाल से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य तक एक निरतंरता बनी रहती है। यह अवश्य है कि कहीं यह निरंतरता की गति धीमी है और कहीं तेज। संस्कृति का पूरा स्वरूप ही ऐतिहासिक संदर्भो से निर्मित होता है, किन्तु उसके ऐसे मूल्यों को, व्यवहार प्रकारों को, जिसकी जड़ें इतिहास में बहुत गहरी होती हैं, परम्परा कहा जाता है। नए संदर्भ उन्हें नया मोड़ देते हैं और विशेष परिस्थितियाँ उनके अर्थ और प्रकार्य भी बदल देते हैं और व्याख्याएँ कई बार यथार्थ से हटकर मिथक और प्रतीक के रूप में परम्पराओं को प्रस्तुत करती हैं। जबकि प्रत्येक युग और सभ्यता में परम्पराओं का स्वरूप बदलता है। यदि प्रागैतिहास है तो परम्परा क्या होगी यह चिंतन का विषय है और यदि युग वैदिक है तो परम्पराएँ धर्म, आचार, मोक्ष के रूप में दिखाई देंगी। अर्थात् यह संभावना कि 'परम्पराएँ' एक ही रहेंगी, इसे नकारना पड़ेगा। दोष तो देखने अथवा पढ़ने वाले का है, जिसका अध्ययन एक पक्षीय होगा। किन्तु यहाँ यह प्रश्न भी लाजमी है कि क्या परिवर्तन और परम्परा एक दूसरे के पयार्य हो सकते हैं ? क्योंकि आधुनिक युग में यह प्रचलित मान्यता है कि परिवर्तनों के सामने परम्परा को बदलना चाहिए, अन्यथा वह समाप्त हो जाएगी। किन्तु परिवर्तन सदैव मनुष्यकृत नहीं होते हैं, प्राकृतिक परिवर्तन भी अपनी पूरी भूमिका इस प्रक्रिया में अदा करते हैं। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण आवागमन, देशांतर आदि, परम्पराओं बनाम संस्कृति को बदलने की माँग करते हैं।16 किन्तु मात्र भौतिक एवं जैविक जगत को देखकर परम्पराओं को समझना तो परम्पराओं को भौतिक प्रतिमान स्थापित करेगी।"
अब प्रश्न यह है कि 'आधुनिक' अथवा 'Modernity' क्या है और इतिहास की प्रक्रिया में इसका क्या योगदान है। हीगल तो कहते हैं जो द्वन्द्व से बाहर निकाले वही नवीन और आधुनिक हैं। आधुनिकता तो एक चुनौती है, जो भारतीय परम्पराओं के आदर्शों का विश्लेषण और चरितार्थ करने की माँग करती है, न कि उसे बदलने और छोड़ने की। वैज्ञानिक प्रगति भी 'आत्म विज्ञा' के बल पर उसे समझने का अवसर पैदा करती है। आधुनिकता को समझने के लिए संस्कृति, सांस्कृतिक परम्पराओं का समझना आवश्यक है जबकि समाज वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को “Myth, History and Reason" का नाम देते है। किन्तु इन तीनों के सम्बंध को "परम्परा बनाम आधुनिकता' के रूपक के रूप में समझना जरुरी है। इतना अवश्य है कि आधुनिकता परम्पराओं को प्रभावित भी करती है। उदाहरण के लिए जापान ने वैज्ञानिक सम्पन्नता के कारण अपने को एशियाई न मानकर उन्नत गोरे देशों की श्रेणी में रखा, किन्तु वहीं दूसरी ओर इण्डोनेशिया ने इस्लाम तो अपनाया पर अपनी मूल परम्पराओं और संस्कृति को नहीं छोड़ा।
इस सम्बंध (परम्परा और आधुनिकता) को समझने के लिए इतिहास की परिभाषाओं को भी समझना पड़ेगा। जिस प्रकार परम्पराएं अतीत को वर्तमान से और वर्तमान को भविष्य से जोड़ती है उसी प्रकार इतिहास की परिभाषा इ.एच कार भी करते हैं : “the function of historyisto promotea profound understanding of both past and present through the interrelation between them"। इतिहास भविष्य के लिए मार्ग निर्धारित करता है। इतिहास समय, परिस्थिति, विचारधाराओं में बदलता रहता है फिर भी एक सर्वमान्य मान्यता इतिहास की धारा में सुरक्षित रहती है, जिससे अतीत की व्याख्या हो सके। सभी धाराएं अतीत के सत्य को ढूँढने का प्रयास और मानव के भविष्य को सुधारने की चिंता करती हैं। यह एक चक्रीय प्रक्रिया है। और इसी प्रकार परम्पराएँ अतीत का सत्य हैं और आधुनिकता उसका संभावित दर्शन और सोच है।