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Jijñāsā
डी.डी. कोसाम्बी भी इतिहास के अध्ययन में आधुनिक और पुरातन के मध्य 'reciprocal relation' स्थापित करते हैं किन्तु साथ में अन्य विधाओं की मदद भी लेते हैं।
जिस प्रकार इतिहास की विभिन्न व्याख्याएँ इतिहास में हेर फेर कर देती हैं, वैसे ही परम्पराओं की पहचान और उसकी व्याख्याएँ परम्पराओं का अनेकों स्वरुप में वर्णन करती हैं। जिस प्रकार इतिहास साक्षी भी है और वाहक भी, उसी प्रकार, परम्पराएँ समाज के समाकलन में सहायक होती है और जीवन के लक्ष्य का निर्धारण भी करती हैं।
भारतीय इतिहास दर्शन में इतिहास का सातत्य, उसकी निरन्तर सत्ता, भविष्य में उसका व्याख्यान 'परम्परा और आधुनिकता को समझने का माध्यम बन सकते हैं। यह ‘काल विज्ञान' यदि परम्पराओं का निर्माता है तो आधुनिकता का प्रेरक और रक्षक भी। इस दृष्टि से दोनों एक दूसरे के पूरक है। जिस प्रकार इतिहास काल विज्ञान के सूत्रों से बँधा और उस पर आश्रित है
इतिहासपुराणानामुन्मेषं निर्मित च यत्।
भूतं भव्यं भविष्यं च त्रिविधं काल संज्ञितम् ।। किन्तु इस सूत्र के होने के बाद भी यह आवश्यक नही कि कोई आदर्श मूल्य सब कालों/देशों/परिस्थितियों में एक समान और उपयुक्त है। इन्हीं परिवर्तनों ने भी इतिहास दर्शन को प्रभावित किया और कहीं इतिहास का सम्बंध खगोलीय चक्रों के प्रवर्तन से जोड़ा गया और कहीं प्राकृतिक परिवर्तन से। कहीं इस परिवर्तन को चक्रीय सिद्धान्त (टॉयनबी के संस्कृति के उत्थान पतन का सिद्धान्त) के रूप में स्थापित किया गया तो कहीं इस प्रक्रिया में कार्य कारण सम्बंध' (हीगल एवं मार्क्स का द्वन्द्ववाद) व्याख्यायित किए गए। अर्थात् सभी ने "प्राचीन से नव" की व्याख्या अपने अपने तरीके से एक दूसरे से सम्बद्ध कर की। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपने स्वदेशी इतिहास दर्शन में उनके विकास को आधुनिकता के साथ पढ़ा जाए और यह जिम्मेदारी इतिहास की हो।
अर्थात् भारतीय इतिहास दर्शन में इतिहास का सातत्य, उसकी निरंतर सत्ता भविष्य में उसका व्याख्यान, भारतीय संदर्भ में परम्परा और आधुनिकता को समझने का माध्यम बन सकते हैं। यह भारतीय इतिहास दर्शन का काल विज्ञान है जो परम्पराओं का निर्माता है तो आधुनिकता का रक्षक भी। भारतीय इतिहास बोध में ही परम्परा और आधुनिकता का अन्योन्याश्रित सम्बंध सुरक्षित है।
सन्दर्भ 'चार्ल्स टेलस, हीगल एण्ड माडर्न सोसाइटी, केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1979, पृ. 527 2 अतीत के धर्म, आस्थाओं एवं विचारों को प्रस्तुत करने वाला विज्ञान | 3 मानव शास्त्र, मानव का प्रकृति के अन्य अवयवों से सम्बंध खोजने वाला विज्ञान। +आधुनिक जन जातियों की प्रागैतिहासिक परम्पराओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान ।
5 रोमिला थापर की पुस्तक 'सोशल मोबिलिटी इन एन्शिएन्ट इण्डिया विद स्पेशल रिफरेन्स टू एलीट ग्रुप में एक हजार ईसा पूर्व से एक हजार ईस्वी तक के प्राचीन भारत की सामाजिक जड़ता का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
पूर्व के समाज को पढ़ने के लिए मार्क्स के द्वारा अपनाए गए सिद्धान्त एवं शब्दावली
राजबली पाण्डेय, ट्रेडिशिनल वेल्यू इन इण्डियन एण्ड अमेरिकन लाइफ शीर्षक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत लेख, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, 13.14 सितम्बर 1963.
*Adherence to tradition especially in cultural or religious practice.'
*Sympathy with or confirmity to modern ideas, practices and standard* अतुल कुमार सिन्हा, इतिहास मूल्य और अर्थ दिल्ली, द्वितीय संस्करण, पृ. 21
9 जी.एस.पी. मिश्रा, प्राचीन भारतीय इतिहास दर्शन तथा इतिहास लेखन, इतिहास स्वरुप एवं सिद्धान्त, सम्पादित गोविन्द चन्द्र पाण्डे, जयपुर, 2007, पृ. 49