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Jijñāsā
आज के युग में यह प्रश्न अथवा दुविधा इसलिए उत्पन्न हो गई, क्योंकि परम्परा और आधुनिकता दोनों को एक दूसरे के विरोधी और प्रतिद्वन्द्वी के रूप में देखा गया। क्योंकि जो आधुनिक है, उसका परम्पराओं में न विश्वास है न आस्था, न ही वह उन्हें समझने की कोशिश करता है। दूसरी ओर जो परम्परावादी है, वह परम्पराओं का बिना विश्लेषण किए हुए 'परम्परावादी' ठप्पे से जुड़ा हुआ है। यही समाज का द्वन्द इतिहास लेखन में स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहा है। परम्परावादी और आधुनिक इतिहास लेखकों के लेखन में इसी प्रकार के अध्ययन और लेखनों को भली भाँति समझा जा सकता है।
इन लेखनों को समझने से पूर्व आवश्यक है सर्वप्रथम 'परम्परा' की अवधारणा को समझना। ‘परम्परा' इतिहास के अतीत का अंग है और अतीत दो प्रकार का होता है - मृत अतीत एवं जीवंत अतीत। मृत अतीत से तात्पर्य उस अतीत से है, जो न पुनर्घटित हो सकता है न उसमें परिवर्तन संभव है, उदाहरण के लिए घटित घटनाएँ अथवा अतीत का मानव । किन्तु जीवंत अतीत किसी न किसी रूप में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखते हुए भविष्य की ओर उन्मुख रहता है, और जीवंत अतीत का उदाहरण है: परम्पराएँ। इस दृष्टि से परम्परा के अर्थ को समझना और परम्परा और रूढ़ि में अंतर समझना आवश्यक है।
परम्पराएँ आदर्श रूप मूल्यों के रूप में जीवित रहती हैं और रूढ़ियाँ व्यवहार रूप तथ्यों के रूप में, जो समय, स्थान, परिस्थिति में भी स्थिर और जड़ रहती हैं। परम्पराओं में देश काल की आवश्यकतानुसार परिवर्तन की गुंजाइश होती है। रूढ़ियाँ वस्तुतः मुमूर्षु परम्पराओं का रूप होती हैं। किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि इतिहास का अध्ययन, अतीत के अध्ययन के माध्यम से स्वयं को सार्थक और उद्देश्यपरक स्थापित करता है वह अतीत जीवंत होता है और उसकी खोज मृत अतीत के माध्यम से की जाती है। मृत अतीत को जीवंत अतीत के रूप में इतिहासकार प्रस्तुत करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि परम्पराएँ हमारी धरोहर हैं, जो पीढ़ी दर पीढी मूल्य के रूप में हस्तान्तरित होती रहती हैं।
परम्परा अंग्रेजी के शब्द Tradition' का पर्याय मानी गई और Tradition' 'Heritage' का पर्याय क्योंकि *Tradition ARHIT “Tradition means transition, delivery or handing over to future the experiences and achievements of the past which are alive and dead and it embodies the principle of eternal life, which emerges from the past, exists in the present and gives birth to the future" YE YRHIT cultural heritage सांस्कृतिक विरासत की परिभाषा से भी मेल खाती है-"cultural heritage is an intangible attribute of society that are inherited from the past generation, maintained in the present and bestowed for the benefit of future generations" यह विरासत ही परम्पराओं की धरोहर है।
इसमें भी विशेष ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस जीवंत अतीत/परम्परा का वाहक मानव है, जो अपनी धरोहर के साथ ही आधुनिकता को अपनाता है। यह विकास की ऊंचाइयाँ तय करने के लिए मानव को मूल्यान्वेषण करना पड़ता है और एक की प्राप्ति के बाद दूसरे के लिए प्रयास करना ही मानवीय चेतना का विकास है। यदि मानवीय चेतना का विकास ही आधुनिकता की मूलभूत पहचान है, तो परम्परा रूपी मूल्य बोध और आधुनिकता एक दूसरे के सम्पोषक है। किन्तु चेतना का विकास, सुख की प्राप्ति तभी होगी जब मूल्य सुरक्षित रहेंगे। यह मूल्य अथवा विचार अथवा आदर्श उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त होते हैं जो अतीत के विषय में महत्वपूर्ण हों, वस्तुतः ऐतिहासिक प्रक्रिया का वास्तविक अर्थ ही सावधानी से सुरक्षित संस्कृति के सर्वोपरि मूल्य है।"
भारत के संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि भारत में 'अर्थ' अथवा 'भौतिक मूल्य' को कभी सर्वोपरि नही माना गया। भ्रामकता ने अध्यात्म एवं 'सेक्यूलरिज्म' को एक समझा ; धर्म की सामाजिक उपयोगिता पर प्रश्न उठाया, धर्म को अफीम की संज्ञा दे डाली। आवश्यकता है उन परम्पराओं को खोजने और स्थापित करने की जो 'मूल्य' की तरह हमारी सनातन धरोहर हैं और जिनका संरक्षण एवं सम्प्रेषण आधुनिकता के मार्ग में सहायक है।