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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना जिनकुशल सूरिपट्टाभिषेकरास (सं. १३७७)। धर्मसूरि - समेदशिखरतीर्थ नमस्कार (१४वीं शती)। धारिसिंह - श्रीनेमिनाथ धुल (७१ छन्द)। पद्म - नेमिनाथ फागु (सं. १३७०) सालीभद्रकक्क, दूहामातृका। पद्मरत्न - जिनप्रबोध सूरिवर्णन (१० गा.)। प्रज्ञातिलक - कच्छुलीरास (सं. १३६३)। फेरु (ठक्कुर) - श्री युगप्रधान चतुष्पदिका (२८ गा.)। महेश्वरसूरि - संयममंजरी (३५ दोहे) (सं. १३६५)। मेरुतुंग - प्रबन्ध चिन्तामणि (सं. १३६१)। मोदमदिर - चतुर्विंशति जिनचतुष्पदिका (२७ छन्द)। मंडलिक - पेथड़ रास (६५ पद्य) (सं. १३६०)। रल्ह - जिणदत्तचरित्र (सं. १३५४)। मुनिराजतिलक - शालिभद्ररास (३५ पद्य) - सं. १३३२। राजकीर्ति - चउवीस जिन स्तवन (२५ गा.)। राजबल्लभ - थूलिभद्दफाग (सं. १३४०)। रामभद्र - शान्तिनाथकलश (१० गा.)। श्रावक लखमसी - जिनचन्द्रसूरिवर्णनारास (सं. १३४१)। लाखम (लक्ष्मणदेव) - णेमिणाहचरिउ (सं. १५१०)। लक्ष्मीतिलक उपाध्याय - प्रत्येक बुद्धचरित्र (१०१३० पद्य) - सं. १३११। श्रावक धर्मप्रकरण बृहद्वृत्ति (१५१३१ पद्य) (सं. १३१७) । शान्तिदेवरास (सं. १३१३)। वस्तिग - वीस विहरमानरास (सं. १४६२) चिहुंगति चउपई। विनयचन्द्रसूरि - नेमिनाथचतुष्पादिका (४० पद्य)। बारव्रतरास (५३ पद्य), आनंद प्रथमोपासक संधि। वीरप्रभ - श्री चन्द्रप्रभ कलश (१६ गाथा)। श्रीधर - भविष्यदत्तकथा, चन्द्रप्रभचरित, वड्ढमाणचरिउ, शान्तिजिनचरित । शान्तिभद्र - चतुर्विंशतिनमस्कार (१४वीं शती)। शान्तिसूरि - सीमन्धर स्तवन (८ गा.)। सहज ज्ञान - श्री जिनचन्द्रसूरि विवाहलउ। सारमूर्ति - जिनपद्मसूरि पट्टाभिषेक (सं. १३९०)। सोममूर्ति - श्री जिनेश्वर