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आदिकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियाँ 77 १३वीं शती के हिन्दी जैन कवि
अभयदेव सूरि - नवांगी वृत्तिकार अभयदेव (सं. ११३९) का 'जयति-हुमणस्तोत्र' तथा द्वितीय अभयदेव का 'जयन्तविजय काव्य' (सं. १२८५) प्रसिद्ध है।
आसिग (सं. १२५७) - आपकी तीन रचनायें मिलती हैं - जीवदयारास, (५३ गा.) चन्दनवाला रास (३५ पद्य) और शान्तिनाथ रास। इनकी भाषा का उदाहरण है - "के नर सालि दालि भुजंता, धिमधलहलु मज्झे विलहंता'।
श्रावक जगडू (१३-१४वीं शती) - खरतरगच्छीय आचार्य जिनेश्वर सूरि के शिष्य थे। आपकी रचना सम्यक्त्व माइ चउपइ (६४ पद्य) उपलब्ध है। इसकी भाषा का उदाहरण देखें - “समकित विणु जो क्रिया करेइ, तालइलोहि नीरू घालेइ'।
जिनेश्वर सूरि (सं. १२०७) - आप जिनपति के पट्टधर थे। आपकी चार रचनायें उपलब्ध हैं - १) महावीर जन्माभिषेक (१४ पद्य) २) श्रीवासु पूज्य बोलिका, ३) चर्चरी, और ४) शान्तिनाथ बोली।
अन्य प्रमुख आदिकालीन हिन्दी जैन कवि इस प्रकार हैं - जयमंगलसूरि (१३वीं शती) - महावीर जन्माभिषेक । जयदेवगणि (१३वीं शती) - ‘भावना संधि' काव्य। देलहणु - गयसुकुमालरास (३४ पद्य) - सं. १३०० । धर्मसूरि - जम्बूस्वामीचरित (४१ पद्य) - सं. १२६६, स्थूलिभद्ररास (४७ पद्य)। सुभद्रासती चतुष्पदिका (४२ पद्य), मयणरेहारास (३६ पद्य)। नेमिचन्द्र भण्डारी - षष्टिशतक (१६० गाथा, प्राकृत) गुरुगुणवर्णन (३५ पद्य)। पृथ्वीचन्द्र - मातृका