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________________ आदिकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियाँ 75 आनन्दा, सावय धम्मदोहा आदि रचनाओं में इस प्रतिक्रिया के दर्शन होते ही हैं। नाथ सम्प्रदाय, सूफी साधना, शैवधारा, वैष्णवधारा, आलवारयुग आदि में आये भक्ति आन्दोलनों ने भी जैनधर्म और साहित्य को भलीभांति प्रभावित किया। आदिकाल का अपभ्रंश बहुल प्रारम्भिक साहित्य प्राकृत के ही उत्तरवर्ती विकसित रूप अपभ्रंश ने तो हिन्दी साहित्य को सर्वाधिक प्रभावित किया है। स्वयंभू (७-८वीं शती) का पउमचरिउ और रिट्ठणेमिचरिउ, धवल (१०-११वीं शती) और यशःकीर्ति के हरिवंशपुराण, पुष्पदन्त (१०वीं शती) तिसट्ठि-पुरिस गुणालंकारु (महापुराण), जसहरचरिउ, णायकुमार चरिउ, धनपाल धक्कड (१०वीं शती) का भविसयत्त कहा, कनकामर (१०वीं शती) का करकण्डचरिउ, धाहिल (१०वीं शती) का पउमसिरिचरिउ, हरिदेव का मयणपराजय, अब्दुल रहमान का संदेसरासक, रामसिंह का पाहुड दोहा, देवसेन का सावयधम्मदोहा आदि सैकडों ग्रन्थ अपभ्रंश में लिखे गये हैं जिन्होंने हिन्दी के आदिकाल और मध्यकाल को प्रभावित किया है। उनकी सहज-सरल भाषा, स्वाभाविक वर्णन और सांस्कृतिक धरातल पर व्याख्यायित दार्शनिक सिद्धान्तों ने हिन्दी जैन साहित्य की समग्र कृतियों पर अपनी अमिट छाप छोडी है। भाषिक परिवर्तन भी इन ग्रन्थों में सहजता पूर्वक देखा जा सकता है। हिन्दी के विकासकी यह आद्य कडी है। ___ अपभ्रंश का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है। उसे हम पूर्वी, पश्चिमी उत्तरी और दक्षिणी अपभ्रंश में विभाजित कर सकते हैं। पूर्वी अपभ्रंश से
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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