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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना सभी प्राच्य भाषाओं के आद्य साहित्यकार के रूप में उनके सशक्त हस्ताक्षर अविस्मरणीय हैं। हिन्दी साहित्य भी इसका अपवाद नहीं है। उसके आदिकाल को जैनाचार्यों ने अपनी प्रतिभा-प्रसूत लेखनी से बहुत समृद्ध किया है। उनके इस योगदान को रेखांकित करना ही हमारा उद्देश्य है। यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि हमने यहां 'आचार्य' शब्द को एक साहित्यकार के रूप में ग्रहीत किया है, पद के रूप में नहीं। इसलिए जैनाचार्य का तात्पर्य है जैन साहित्यकार, चाहे वह साधुहो या श्रावक। काल विभाजन हिन्दी साहित्य की अधुनातम शोध प्रवृत्तियों के आधार पर अन्ततः यह कहा जा सकता है कि हिन्दी साहित्य के काल विभाजन का प्रश्न अभी तक विवादास्पद बना हुआ है। डॉ. ग्रियर्सन, मिश्रबन्धु, शिवसिंह सैंगर, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, राहुल सांकृत्यायन, डॉ. रामकुमार वर्मा आदि विद्वानों ने हिन्दी साहित्य के आदिकाल का प्रारम्भ वि.सं.७ वीं शती से १४ वीं शती तक स्वीकार किया है। दूसरी ओर रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र आदि विद्वान उसका प्रारम्भ १० वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक मानते हैं। इन विद्वानों में कुछ विद्वान आदिकालीन अपभ्रंश भाषा में लिखे साहित्य को पुरानी हिन्दी का रूप मानते हैं और कुछ हिन्दी साहित्य के विकास में उनका उल्लेख करते हैं। आ. रामचन्द्र शुक्ल और विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने हिन्दी जैन साहित्य को नितान्त धार्मिक, साम्प्रदायिक और शुष्क ठहराया। पर हजारीप्रसाद द्विवेदी और भोलाशंकर व्यास जैसे तलस्पर्शी विद्वान उसे
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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